स्टेम सेल क्या है? हमारा शरीर बहुत सी कोशिकाओं से मिलकर बना होता है, स्टेम सेल्स या स्टेम कोशिका, बोनमैरो, अस्थिमज्जा, भ्रूण स्टेम सेल, यह कोशिकाएं क्षतिग्रस्त कोशिकाओं की जगह ले लेती हैं और व्यक्ति स्वस्थ्य हो जाता है, स्टेम सेल्स के फायदे, कार्ड स्टेम सेल, वयस्क स्टेम सेल, भ्रूण या गर्भनाल
हमारा शरीर बहुत सी कोशिकाओं से मिलकर बना होता है। हर कोशिका का अपना कार्य होता है। स्टेम सेल्स या स्टेम कोशिका ऐसी सेल्स होती हैं, जो विभाजित होने के बाद, फिर से पूर्ण रूप धारण कर लेती हैं। इन कोशिकओं से, लगभग शरीर के किसी भी अंग की कोशिका तैयार की जा सकती है। स्टेम सेल्स मुख्य रूप से बोनमैरो (अस्थिमज्जा) के अंदर पाई जाती हैं। इसके अलावा, इन्हें रक्त से भी प्राप्त किया जा सकता है।
स्टेम सेल की खोज लू कमियां के पेशेंट के साथ ट्रीटमेंट करते थे जिनमें स्टैंसिल नहीं बनते थे हमको यह नहीं पता था कि बोन मैरो में कौन से सेल ऐसे हैं जो ज्यादा मात्रा में पाए जाते हैं और ज्यादा होते हैं बाद में पता लगा कि इसमें सबसे ज्यादा मात्रा स्टेम सेल की पाई जाती है स्टेम सेल एक प्रकार का मास्टर सेल भी होता है वह किसी भी सेल में जाकर वैसा ही हो जाता है जैसा कि दूसरा सेल होता है जैसे कि लीवर खराब है तो लीवर में जो सेल होते हैं उनमें अगर स्टेम सेल को इंजेक्ट या डालेंगे तो वह लीवर के सेल जैसा ही हो जाएगा इससे वह लीवर जितना भी डैमेज हुआ होगा वह नए सेल बनाने लगेगा और लीवर को रीजन रेट करते हुए उसको पावर और ठीक कर देगा हम कई केसों में इस प्रकार के स्टेम सेल को उपयोग कर चुके हैं डायबिटीज न्यूरोलॉजी स्पाइन इंजरी ब्रेन डिसीसेस इसका यूज इंडिया में अभी रिस्ट्रिक्टेड है गवर्नमेंट ने कुछ ऐसे इंस्टिट्यूट
स्टेम सेल की खोज लू कमियां के पेशेंट के साथ ट्रीटमेंट करते थे जिनमें स्टैंसिल नहीं बनते थे हमको यह नहीं पता था कि बोन मैरो में कौन से सेल ऐसे हैं जो ज्यादा मात्रा में पाए जाते हैं और ज्यादा होते हैं बाद में पता लगा कि इसमें सबसे ज्यादा मात्रा स्टेम सेल की पाई जाती है स्टेम सेल एक प्रकार का मास्टर सेल भी होता है
वह किसी भी सेल में जाकर वैसा ही हो जाता है जैसा कि दूसरा सेल होता है जैसे कि लीवर खराब है तो लीवर में जो सेल होते हैं
उनमें अगर स्टेम सेल को इंजेक्ट या डालेंगे तो वह लीवर के सेल जैसा ही हो जाएगा इससे वह लीवर जितना भी डैमेज हुआ होगा वह नए सेल बनाने लगेगा और लीवर को रीजन रेट करते हुए उसको पावर और ठीक कर देगा हम कई केसों में इस प्रकार के स्टेम सेल को उपयोग कर चुके हैं डायबिटीज न्यूरोलॉजी स्पाइन इंजरी ब्रेन डिसीसेस इसका यूज इंडिया में अभी रिस्ट्रिक्टेड है गवर्नमेंट ने कुछ ऐसे इंस्टिट्यूटस्टेम कोशिका या मूल कोशिका (अंग्रेज़ी:Stem Cell) ऐसी कोशिकाएं होती हैं, जिनमें शरीर के किसी भी अंग कोकोशिका के रूप में विकसित करने की क्षमता मिलती है। इसके साथ ही ये अन्य किसी भी प्रकार की कोशिकाओं में बदल सकती है।[1] वैज्ञानिकों के अनुसार इन कोशिकाओं को शरीर की किसी भी कोशिका की मरम्मत के लिए प्रयोग किया जा सकता है।[2] इस प्रकार यदि हृदय की कोशिकाएं खराब हो गईं, तो इनकी मरम्मत स्टेम कोशिका द्वारा की जा सकती है। इसी प्रकार यदि आंख की कॉर्निया की कोशिकाएं खराब हो जायें, तो उन्हें भी स्टेम कोशिकाओं द्वारा विकसित कर प्रत्यारोपित किया जा सकता है। इसी प्रकार मानव के लिए अत्यावश्यक तत्व विटामिन सी को बीमारियों के इलाज के उददेश्य से स्टेम कोशिका पैदा करने के लिए भी प्रयोग किया जा सकता है।
[3] अपने मूल सरल रूप में स्टेम कोशिका ऐसे अविकसित कोशिका हैं जिनमें विकसित कोशिका के रूप में विशिष्टता अर्जित करने की क्षमता होती है। क्लोनन के साथ जैव प्रौद्योगिकी ने एक और क्षेत्र को जन्म दिया है, जिसका नाम है कोशिका चिकित्सा। इसके अंतर्गत ऐसी कोशिकाओं का अध्ययन किया जाता है, जिसमें वृद्धि, विभाजन और विभेदन कर नए ऊतक बनाने की क्षमता हो।[4] सर्वप्रथम रक्त बनाने वाले ऊतकों से इस चिकित्सा का विचार व प्रयोग शुरु हुआ था। अस्थि-मज्जा से प्राप्त ये कोशिकाएं, आजीवन शरीर में रक्त का उत्पादन करतीं हैं और कैंसर आदि रोगों में इनका प्रत्यारोपण कर पूरी रक्त प्रणाली को, पुनर्संचित किया जा सकता है। ऐसी कोशिकाओं को ही स्टेम कोशिका कहते हैं।
इन कोशिकाओं का स्वस्थ कोशिकाओं को विकसित करने के लिए प्रयोग किया जाता है। १९६० में कनाडा के वैज्ञानिकों अर्नस्ट.ए.मुकलॉक और जेम्स.ई.टिल की खोज के बाद स्टेम कोशिका के प्रयोग को बढ़ावा मिला।[1] स्टेम कोशिका को वैज्ञानिक प्रयोग के लिए स्नोत के आधार पर भ्रूणीय, वयस्क तथा कॉर्डब्लड में बांटा जाता है। वयस्क स्टेम कोशिकाओं का मनुष्य में सुरक्षित प्रयोग लगभग ३० वर्षो के लिए किया जा सकता है। अधिकांशत: स्टेम सेल कोशिकाएं भ्रूण से प्राप्त होती है।[5] ये जन्म के समय ही सुरक्षित रखनी होती हैं। हालांकि बाद में हुए किसी छोटे भाई या बहन के जन्म के समय सुरक्षित रखीं कोशिकाएं भी सहायक सिद्ध हो सकती हैं।
भ्रूण विकास के दौरान डिम्ब वह एक कोशिका है, जो पूरे जीव को बनाने की पूर्ण क्षमता रखती है। ये कोशिकाएं कई बार विभाजित होकर ऐसी कोशिकाएं बनातीं हैं, जो पूर्ण सक्षम होतीं हैं अर्थात विभाजित होने पर प्रत्येक कोशिका पूरा जीव बना सकती है। कुछ और विभाजनों के पश्चात ये कोशिकाएं, एक विशेष गोलाकार रचना बनातीं हैं, जिसेब्लास्टोसिस्ट कहते हैं, परंतु इस अवस्था में पृथक की गईं कोशिकाएं, पूर्ण जीव विकसित करने में सक्षम नहीं होती हैं। अतः इन्हें अंशतः सक्षम कोशिका कहा जाता है। भीतरी कोशिकाएं कई बार विभाजित और विभेदित होकर विशेष कोशिकाएं बनातीं हैं, जो प्रत्येक ऊतक को पुनर्जीवित करने की क्षमता रखतीं हैं। इन्हें बहु-सक्षम कोशिकाएं कहते हैं। ये कोशिकाएं प्रत्येक ऊतक में संरक्षित रहतीं हैं, तथा ऊतकों में कोशिका जनन तथा पुनः संरचना के लिए उपयोगी होती हैं। इनके स्थान पर आंशिक सक्षम कोशिकाएं भी प्रयोग की जा सकतीं हैं। इनका लाभ यह है कि किसी भी प्रकार के ऊतक विभेदन के लिए इन्हें प्रेरित किया जा सकता है, क्योंकि ये भ्रूण से प्राप्त की जातीं हैं, इसलिये इन्हें भ्रूणीय स्टेम कोशिका कहा जाता है। हृदय रोग तथा मधुमेह के निदान में, विभेदित कोशिकाओं का बड़ा महत्व है। तंत्रिका तंत्र के रोगोंमें भी विशेषतः तंत्रिकाओं का प्रत्यारोपण इनकी अवस्थाओं में सुधार लाने की क्षमता रखता है। क्षतिग्रस्त अंगों की मरम्मत भी इनसे की जा सकती है।
स्टेम सेल उपचार के अंतर्गत विभिन्न रोगों के निदान के लिए स्तंभ कोशिका का प्रयोग किया जाता है। भारत में भी इसका प्रयोग होने लगा है। इसकी सहायता से कॉर्निया प्रत्यारोपणमें और हृदयाघात के कारण क्षतिग्रस्त मांसपेशियों के उपचार में सफलता मिली है।[1] अधिकांशत: रोग के उपचार में प्रयुक्त स्टेम कोशिका रोगी की ही कोशिका होती है। ऐसा इसलिए किया जाता है कि बाद में चिकित्सकीय असुविधा न हो। पार्किसन रोग में भी इसका प्रयोग किया जा रहा है।[7]न्यूरोमस्कलर रोग, आर्थराइटिस, मस्तिष्क चोट, मधुमेह, डायस्ट्रोफी, एएलएस, पक्षाघात, अल्जाइमर जैसे रोगों के लिए स्टेम सेल उपचार को काफी प्रभावी माना जा रहा है। प्रयोगशाला में बनाई गई स्टेम कोशिकाएँ निकट भविष्य में कई प्रकार के रक्त कैंसर का उपचार कर सकती हैं। इस प्रक्रिया द्वारा दांत का उपचार भी संभव है।[8] एक जापानी स्टेम कोशिका वैज्ञानिक युकियो नाकामुरा के अनुसार एप्लास्टिक एनीमिया यानि लाल रक्त कणिकाओं की कमी और थैलीसीमिया का स्टेम कोशिका तकनीक से उपचार संभव है।
[9] इस तकनीक में भ्रूणीय स्टेम कोशिकाओं का उपयोग नहीं होता, अतएव यह नैतिक विवादों से परे है। कैंसर-रोधी तत्वों के माध्यम से रक्त कैंसर कोशिकाओं को समाप्त करने के सार्थक