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कानपुर 215 का हो गया ,हैप्पी बर्थडे कानपुर उत्तर प्रदेश

साल 1803 में आज ही की तारीख़ यानी 24 मार्च को ईस्ट इंडिया कंपनी ने कानपुर को ज़िला घोषित किया था. और आज से कानपुर 215 का हो गया .
कानपुर नाम है एक जीवन शैली का .. कानपुर प्रतीक है विद्रोह का .. कानपुर चिन्ह है लुप्त होती सांस्कृतिक विरासत का .. कानपुर अवशेष है हिन्दू – मुस्लिम एकता का .. कानपुर मिसाल है कभी न हारने वाले जज्बे का .
कई सदियों पूर्व सचेंडी के राजा हिन्दू सिंह के द्वारा चार गाँवों (पटकापुर , कुरसवाँ , जुही तथा सीमामऊ ) को मिला कर बसाया गया ‘कान्हपुर’, आज अपने प्रदेश के रहनुमा (मुख्यमंत्री) का इंतिजार कर रहे कानपुर में तब्दील हो चुका है .. और इन सैकड़ों वर्षों में कानपुर ने बहुत कुछ बनता बिगड़ता देखा है. अनगिनत उतार चढ़ाव देखे हैं . इन सैकड़ों सालों में न जाने कितने किस्से कहानियों को अपने दामन में सँजोया है कानपुर ने .
कानपुर ने शस्त्र भी देखे हैं और शास्त्र भी . कानपुर ने अपनी ज़मीन पर नील और अफ़ीम को उगते हुये देखा है तो अपनी मिलों के कपड़ों से दुनियाँ को सजाया भी है .. कानपुर ने फिरंगियों को लगान के लिए जुल्म ढाते देखा तो जरुरतमन्दों के लिए अपना सब कुछ लुटाने वालों को भी .
ये वही कानपुर है जिसके जयघोष से अंग्रेजों के पैर उखड़ जाते थे (1857) . ये वही कानपुर है जिसने हर क्रांतिकारी को अपने गले लगाया और जिसने आजादी के लिए जलायी गयी मशाल की लौ को कभी मंद नहीं होने दिया .
ये वही कानपुर है जिसकी एकता के लिए एक “ विद्यार्थी “ खुद की आहुति दे देता है .. ये वही कानपुर है जो पुरे भारत को “ झंडा उंचा देता है “ . ये वही कानपुर है जिसके हर तरफ धर्म के प्रतिमान गर्व से सर उठाये खड़े हैं .. अनगिनत शौर्य कहानियाँ इसके जर्रे-जर्रे में बिखरी हैं . हर दौर को कानपुर ने कुछ दिया है , और कानपुर को हर दौर ने कुछ.
मिलों का शहर खुद को धीमे-धीमे मॉल्स और मल्टीप्लेक्स के शहर में तब्दील होते देख रहा है. कभी टम-टम और बैलगाड़ी से चला शहर आज मैट्रो के मुहाने पर है .. “ पूरब के मैंनचेस्टर “ का लड़का आज लुधियाना की किसी कपड़ा मिल में मजदूरी करता है और हम “ लाइफ स्टाइल “ में जा कर किसी विदेशी टैग वाली शर्ट को खरीद कर खुश होते हैं .
214 साल के लंबे सफ़र में कहीं कानपुर की गाड़ी शायद पटरी से उतर गई. सिविल लाइंस स्थित लाल इमली मिल की घड़ी जो लंदन के बिग बेन की तर्ज़ पर बनी है कभी कानपुर का चेहरा हुआ करती थी. आज घड़ी तो चल रही है पर मिल की मशीनें और लूम शांत पड़ चुकी हैं.
आज़ादी के बाद भी कानपुर ने तरक़्क़ी की. यहां आईआईटी खुला, ग्रीन पार्क इंटरनेशनल क्रिकेट स्टेडियम बना, ऑर्डनेंस फैक्ट्रियाँ स्थापित हुईं. इस सबके बाद कानपुर का परचम दुनिया में फहराने लगा.
पर दर्द तब होता है जब हमारी आज की पीढ़ी हनी सिंह को तो जानती है पर वो न गणेश शंकर विद्यार्थी को जानती है और न नाना साहब या अजीमुल्ला को . दर्द तब होता है जब हम किसी बड़े शहर में खुद को कानपुर वासी बताने से झिझकते हैं . दर्द तब होता है जब किसी विदेशी धरती पर बैठे कोई कानपुर से लोगों को परिचित करवाना चाहते हैं पर वो खाली हाथ होते हैं .दर्द तब होता है जब हम यू-ट्यूब पर कानपुर सर्च करते हैं तो हमें दिखता है , कोई ट्रेन हादसा , कुछ राजनीतिक गैंगवार या पान मसाला कैसे बनायें के वीडियोज .. कानपुर धीरे-धीरे एक भूला दिए गये इतिहास का हिस्सा बनता जा रहा है .
कानपुर में बहुत कुछ है जिसे अभी सहेजा जाना आवश्यक है .. नहीं तो वक्त के साथ-साथ सब कुछ विलुप्त हो जायेगा .. और रह जायेंगे इतिहास के पन्नों पर कानपुर के बिखरे अवशेष मात्र .
मैं खुद को खुशनसीब मानता हूँ कि मैं कानपुर का एक हिस्सा हूँ .इस शहर ने हमें बहुत कुछ दिया है . कानपुर के गौरवशाली गुजरे हुए कल के अलावा आज भी बहुत कुछ है जिस पर हम गर्व कर सकते हैं ..और इसी लिए हम प्रयास कर रहे हैं , वास्तव में कानपुर क्या है, इसे दुनियाँ को दिखा देना चाहते हैं .
नाम इसलिए उँचा हैं..हमारा
क्योंकि……
हम ‘बदला लेने, की नही ‘बदलाव लाने, की सोच रखते .
नोट : 24 मार्च 1803 को कानपुर जिला घोषित हुआ या नही इस बात को लेकर इतिहासकारों में भिन्नता हैं .कुछ लोगो के अनुसार इस तिथि से पहले भी कानपुर में जिला कलेक्टर थे . इस लिए ये पहले ही जिला बन चुका था , पर सरकारी दस्तावेजों के अनुसार ये 24 मार्च 1803 को ही जिला बना .
On March 24th, 1803 Kanpur was declared a district for the first time.
Celebrating 215th Birthday of our beloved Kanpur.
Our City has a long and beautiful history.
The idea of Freedom Struggle of 1857 was originated here only.
Chandrashekar Aazad spent lot of time in Cawnpore.
It was Mancester of India.
Its 1st in UP and 9th in National revenue contribution.
सभी कानपुर-वासियों को हार्दिक बधाई.
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चंडीगढ़ में पेट्रोल-डीजल बिक्री पर रोक, 2 व्हीलर को 2 और कार को 5 लीटर ही मिलेगा फ्यूल

चंडीगढ़ में पेट्रोल-डीजल बिक्री पर रोक, 2 व्हीलर को 2 और कार को 5 लीटर ही मिलेगा फ्यूल
Hit and Run New Law Live:
मोटर चालकों से जुड़े ‘हिट-एंड-रन’ सड़क दुर्घटना मामलों के संबंध में नए दंड कानून में प्रावधान के खिलाफ ट्रक चालकों ने मंगलवार को लगातार दूसरे दिन देश के अलग-अलग राज्यों में विरोध- प्रदर्शन किया. महाराष्ट्र में प्रदर्शन की वजह से कुछ स्थानों पर ईंधन की कमी की आशंका पैदा हो गई. भारतीय दंड विधान की जगह लेने जा रही भारतीय न्याय संहिता में ऐसे चालकों के लिए 10 साल तक की सजा का प्रावधान है जो लापरवाही से गाड़ी चलाकर भीषण सड़क हादसे को अंजाम देने के बाद पुलिस या प्रशासन के किसी अफसर को दुर्घटना की सूचना दिए बगैर मौके से फरार हो जाते हैं.

हिट एंड रन कानून में सजा को सख्त किए जाने के विरोध में वाहन चालकों की हड़ताल का आज दूसरा दिन है। दिल्ली, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, उत्तराखंड समेत कई राज्यों में हड़ताल का असर दिखाई दे रहा है।
उत्तर प्रदेश के मैनपुरी में जिले में हड़ताल के दौरान चालकों ने पुलिस पर पथराव किया। हिट-एंड-रन कानून के खिलाफ ट्रक ड्राइवरों के विरोध प्रदर्शन के कारण छत्तीसगढ़ के रायपुर में लोगों को समस्याओं का सामना करना पड़ा। सुबह से ही पेट्रोल पंपों पर लंबी कतारें देखने को मिली।
महाराष्ट्र के पेट्रोलियम डीलर्स एसोसिएशन के सचिव अकील अब्बास ने बताया कि छत्रपति संभाजीनगर में कुछ पेट्रोल पंपों पर काम पहले ही बंद हो चुका है. अधिकारियों ने बताया कि सोलापुर, कोल्हापुर, नागपुर और गोंदिया जिलों में भी ‘रास्ता रोको’ प्रदर्शन किया गया, वहीं नवी मुंबई और अन्य स्थानों पर स्थिति नियंत्रण में है.
वहीं छत्तीसगढ़ के कई हिस्सों में यात्री बसों के चालकों ने ‘हिट-एंड-रन’ मामलों से संबंधित नए कानून को वापस लेने की मांग को लेकर काम बंद किया जिससे यात्रियों को परेशानी का सामना करना पड़ा. विरोध प्रदर्शन में ट्रक चालक भी शामिल थे जिससे सामान ढुलाई प्रभावित हुई. ट्रक चालकों की हड़ताल के कारण पेट्रोल-डीजल की आपूर्ति प्रभावित होने के भय से शहरों में पेट्रोल पंप के सामने लोगों की लंबी-लंबी कतारें लग गईं.
Acident
Hit and Run Case Protest: हिट एंड रन कानून के खिलाफ प्रदर्शन उग्र, मैनपुरी में ट्रक चालकों और पुलिस की झड़प; चले ईंट-पत्थर

Hit and Run Case Protest: हिट एंड रन कानून के खिलाफ प्रदर्शन उग्र, मैनपुरी में ट्रक चालकों और पुलिस की झड़प; चले ईंट-पत्थर
हिट एंड रन कानून में सजा को सख्त किए जाने के विरोध में वाहन चालकों की हड़ताल का आज दूसरा दिन है। दिल्ली उत्तर प्रदेश मध्य प्रदेश बिहार उत्तराखंड समेत कई राज्यों में हड़ताल का असर दिखाई दे रहा है। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में हिट एंड रन मामलों को लेकर नए कानून के खिलाफ यूपी राज्य परिवहन के बस चालकों ने हड़ताल की।

हिट एंड रन कानून में सजा को सख्त किए जाने के विरोध में वाहन चालकों की हड़ताल का आज दूसरा दिन है। दिल्ली, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, उत्तराखंड समेत कई राज्यों में हड़ताल का असर दिखाई दे रहा है।
उत्तर प्रदेश के मैनपुरी में जिले में हड़ताल के दौरान चालकों ने पुलिस पर पथराव किया। हिट-एंड-रन कानून के खिलाफ ट्रक ड्राइवरों के विरोध प्रदर्शन के कारण छत्तीसगढ़ के रायपुर में लोगों को समस्याओं का सामना करना पड़ा। सुबह से ही पेट्रोल पंपों पर लंबी कतारें देखने को मिली।
हिट एंड रन कानून में सजा को सख्त किए जाने के विरोध में वाहन चालकों की हड़ताल का आज दूसरा दिन है। दिल्ली, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, उत्तराखंड समेत कई राज्यों में हड़ताल का असर दिखाई दे रहा है।
उत्तर प्रदेश के मैनपुरी में जिले में हड़ताल के दौरान चालकों ने पुलिस पर पथराव किया। हिट-एंड-रन कानून के खिलाफ ट्रक ड्राइवरों के विरोध प्रदर्शन के कारण छत्तीसगढ़ के रायपुर में लोगों को समस्याओं का सामना करना पड़ा। सुबह से ही पेट्रोल पंपों पर लंबी कतारें देखने को मिली।
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पौधा खाते ही शरीर में पहुंचेगी कोरोना की वैक्सीनअमेरिकी वैज्ञानिक

पौधा खाते ही शरीर में पहुंचेगी कोरोना की वैक्सीन, अमेरिकी वैज्ञानिक डेवलप कर रहे है ऐसा प्लांट
- फाइजर और मॉडर्ना ने mRNA तकनीक से तैयार की है अपनी कोविड की वैक्सीन
- कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक इसी mRNA को पौधों में पहुंचाने की कोशिश कर रहे हैं
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वैक्सीन का नाम सुनते ही कई लोगों को इंजेक्शन का डर सताने लगता है। अमेरिका के वैज्ञानिक इसी डर को खत्म करने की कोशिश में जुटे हैं। वो ऐसा पौधा विकसित कर रहे हैं जिसे खाने के बाद इंसान में वैक्सीन पहुंच जाएगी। इसकी शुरुआत कोविड वैक्सीन से की जाएगी। आसान भाषा में समझें तो लोगों को पौधा खिलाकर कोविड की वैक्सीन दी जाएगी।
वैक्सीन वाले पौधे को अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया रिवरसाइड के शोधकर्ता विकसित कर रहे हैं। पौधे की मदद से कोरोना की mRNA वैक्सीन को इंसान में पहुंचाने की कोशिश कर रहे हैं।
पौधों में कैसे पहुंचेगी वैक्सीन, कैसे इसमें स्टोर होगी, वैक्सीन के इस नए तरीके के क्या फायदे होंगे और कितना कुछ बदलेगा, जानिए इन सवालों के जवाब….
सबसे पहले जानिए, कैसे काम करती है mRNA टेक्नोलॉजी से तैयार कोविड वैक्सीन
फाइजर और मॉडर्ना ने अपनी वैक्सीन को तैयार करने में mRNA तकनीक का इस्तेमाल किया है। इससे पहले तक इस तकनीक का इस्तेमाल कम ही किया जाता था। हाल में कोविड वैक्सीन तैयार करने के बाद इस तकनीक का इस्तेमाल बढ़ रहा है। कई कंपनियां फ्लू का टीका बनाने के लिए mRNAतकनीक का इस्तेमाल कर रही हैं।इस तकनीक से तैयार कोविड वैक्सीन रोगों से लड़ने वाले इम्यून सिस्टम को ट्रेनिंग देती है कि कोरोना वायरस का स्पाइक प्रोटीन कैसा होता है। इस ट्रेनिंग के बाद शरीर स्पाइक प्रोटीन को समझने के लायक बन जाता है। जब भी कोरोना शरीर को संक्रमित करता है तो इम्यून सिस्टम उस वायरस के स्पाइक प्रोटीन को पहचान लेता है और उसे खत्म करने की कोशिश करता है।
ऐसी वैक्सीन से कितना कुछ बदल जाएगा, अब यह समझिए
- शोधकर्ताओं का कहना है, जिस तकनीक से फाइजर-बायोएनटेक और मॉडर्ना ने कोविड वैक्सीन तैयार की है, हम उसी तकनीक से वैक्सीन तैयार करके पौधे के जरिए इंसानों तक पहुंचाने की कोशिश में जुटे हैं।
- पौधे आसानी से पच जाते हैं जबकि सिरिंज से वैक्सीन लेने के बाद साइड इफेक्ट का खतरा बना रहता है। पौधों के रूप में दी जाने वाली वैक्सीन का रख-रखाव और लाना-ले जाना आसान होगा। कम तापमान पर पौधों को रखने पर इसमें मौजूद वैक्सीन के खराब होने का खतरा भी नहीं होगा।
- अगर यह प्रयोग सफल रहता है, निम्न आय वर्ग वाले देशों के लिए वैक्सीन वाला पौधा एक वरदान की तरह होगा। जहां कोविड की वर्तमान वैक्सीन के मुकाबले इन पौधों का स्टोरेज और ट्रांसपोर्टेशन आसान होगा और खर्चा भी कम आएगा।
एक इंसान को वैक्सीन के लिए कितने पौधे चाहिए होंगे?
जवाब है, सिर्फ एक। कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी के शोधकर्ता जुआन पाब्लो कहते हैं, एक पौधा एक इंसान के लिए पर्याप्त mRNA का निर्माण करेगा और उसे वैक्सीनेट किया जा सकेगा। पौधे के जरिए वैक्सीन पहुंचना हमारा लक्ष्य है, इसके लिए हम अपने बगीचे में पालक और लेट्टुस उगा रहे हैं। किसान भी इसे पूरे खेत में उगा सकेंगे।वैज्ञानिक पौधे के क्लोरोप्लास्ट में पहुंचाएंगे mRNA
शोधकर्ताओं का मानना है कि पौधों में मौजूद क्लोरोप्लास्ट mRNA को संभाल सकता है। इससे साफ है कि इसमें काफी क्षमता है। क्लोरोप्लास्ट है क्या, इसे भी समझते चलिए। दरअसल, पौधों का रंग जिस पिगमेंट के कारण हरा होता है, उसे ही क्लोरोप्लास्ट कहते हैं।इस क्लोरोप्लास्ट में mRNA को कैसे पहुंचाया जाए और लम्बे समय तक सुरक्षित रखा जाए, वैज्ञानिकों की एक टीम में इसका पता लगाने में जुटी हुई है। अगर यह प्रयोग सफल रहता है तो यह ओरल वैक्सीन की तरह काम करेगी।
-130 डिग्री पर वैक्सीन स्टोर करने की जरूरत नहीं पड़ेगी
वर्तमान में मौजूद mRNA वैक्सीन को स्टोर करने के लिए -130 डिग्री तापमान और ड्राय आइस की जरूरत होती है। ऐसे रखरखाव के कारण वैक्सीन की महंगी पड़ती है और ग्रामीण क्षेत्रों में इसे पहुंचाना मुश्किल हो जाता है। लेकिन वैक्सीन वाले पौधों को आसानी से विकसित किया जा सकेगा। यह लम्बी दूरी तय कर सकेगा।
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