गो रक्षा में जुटा हिमाचल का एक विश्वविद्यालयविश्वविद्यालय के स्टाफ ने सड़कों पर लावारिस घूम रहीं देसी नस्लों की 43 गाय एकत्र की हैं।
विश्वविद्यालय का प्रत्येक विभाग तीन से चार गाय अपने परिसर में खूंटों पर बांध चुका है। यहां कुल 12 विभाग हैं। सड़कों से बेसहारा गायों को ढूंढने का सिलसिला जारी है। विश्वविद्यालय ने यहां पर सौ से अधिक गायों को बांधने की तैयारी की है। राज्यपाल आचार्य देवव्रत ने हाल ही में जैविक खेती कार्यक्रम में गो रक्षा, गोमूत्र और गोबर से जैविक और प्राकृतिक खेती अपनाने के लिए प्रेरित किया था। इस कार्यक्रम में देश भर से वैज्ञानिक यहां पहुंचे थे।
फल-सब्जियों पर शोध करने वाले हिमाचल प्रदेश के डा. वाईएस परमार बागवानी एवं वानिकी विश्वविद्यालय ने गो रक्षा का अनोखा प्रयोग किया है। सोलन के नौणी स्थित ये विश्वविद्यालय सड़कों से बेसहारा व लावारिस गायों को लाकर उन्हें पाल रहा है। इससे जहां इन गायों को आसरा मिल रहा है, वहीं इनके गोबर और गोमूत्र से कीटनाशकों के विकल्प बनाने की भी तैयारी है।
इनका प्रयोग हरेक विभाग फल और सब्जियों पर करेगा। ये अभियान विवि के कुलाधिपति व राज्यपाल आचार्य देवव्रत के दिशा निर्देश पर चलाया जा रहा है। जैविक और प्राकृतिक खेती की दिशा में यह प्रदेश में नई पहल होगी।
ने बताया है कि विवि में पाली जा रहीं 43 गायें निकटवर्ती ओच्छघाट, गिरिपुल आदि इलाकों में लावारिस घूम रही थीं। रात को रेन शेल्टर आदि में इकट्ठा होती थीं। इन्हें एकत्र कर विश्वविद्यालय के सभी विभागों को पालने के लिए दे दिया है। अभी और गायें एकत्र की जा रही हैं।
गोबर-गोमूत्र से तैयार बीजामृत और जीवामृत पर अब तक कई शोध हो चुके हैं। साउथ इंडिया इस मामले में बहुत आगे है। राज्यपाल आचार्य देवव्रत के निर्देशानुसार यह काम किया गया है। इसका समाज में भी अच्छा संदेश जाएगा। जो लोग देसी गायों को सड़कों पर बेसहारा छोड़ रहे हैं, वे उनकी उपयोगिता समझने के बाद ऐसा नहीं करेंगे।
देसी गाय के गोमूत्र और गोबर से तैयार होने वाले बीजामृत, जीवामृत जैसे उत्पादों की जानकारी देने के लिए विश्वविद्यालय प्रदेश भर में करीब 5000 पोस्टर लगाएगा। हर जिले में 500 से ज्यादा पोस्टर लगाए जाएंगे। ये पोस्टर छपने के लिए दिए हैं।