भगवान भोलेनाथ देवों के देव महादेव की उपासना के उपाय पुराणों में उल्लेख है…

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भगवान भोलेनाथ को देवों के देव महादेव कहे जाते हैं। पुराणों में उल्लेख है कि जब ब्रम्हांड की संपूर्ण शक्ति या सारे देवता हार मान जाते हैं तो भोले बाबा ही उसका उपाय सुझाते हैं। शिवजी की आराधना बड़ी ही लाभकारी है। पुराणों में यहां तक उल्लेख है कि एक लोटा जल चढ़ाने मात्र से भोलेबाबा प्रसन्न हो जाते हैं और मनवांछित फल देते हैं। भगवान शिव शाम प्रकृति एवं रुद्रों के लिए भी जाने जाते हैं। देवताओं में शिवजी को एकदम अलग पाया गया है। सृष्टि की उत्पत्ति स्थिति एवं संहार के भी यह आधिपति कहे गए हैं। शिव अनादि तथा सृष्टि प्रक्रिया के आदेश कर्ता हैं। ये कालों के काल महाकाल एवं ज्योतिष शास्त्र के आधार हैं। महा अघोरी और तंत्र मंत्र के रचयिता भी हैं। यह तंत्र को और अघोरियों की भी परम आराध्य हैं इनके अनेकों अवतार हैं। हम आपको बताते हैं भगवान शिव को प्रसन्न करने के सबसे सरल एवं सिद्ध किए हुए मंत्र।

इन्हें देवों का देव महादेव भी कहा जाता है। शिवजी की आराधना का मूल मंत्र तो ऊं नम: शिवाय ही है। लेकिन इस मंत्र के अतिरिक्त भी कुछ मंत्र हैं जिनसे भगवान शिव बेहद प्रसन्न हो जाते हैं।

भगवान शिव के मंत्र
नागेंद्रहाराय त्रिलोचनाय भस्मांग रागाय महेश्वराय
नित्याय शुद्धाय दिगंबराय तस्मे न काराय नम: शिवाय:॥
मंदाकिनी सलिल चंदन चर्चिताय नंदीश्वर प्रमथनाथ महेश्वराय
मंदारपुष्प बहुपुष्प सुपूजिताय तस्मे म काराय नम: शिवाय:॥
शिवाय गौरी वदनाब्जवृंद सूर्याय दक्षाध्वरनाशकाय
श्री नीलकंठाय वृषभद्धजाय तस्मै शि काराय नम: शिवाय:॥
अवन्तिकायां विहितावतारं मुक्तिप्रदानाय च सज्जनानाम्।
अकालमृत्यो: परिरक्षणार्थं वन्दे महाकालमहासुरेशम्।।

स्वास्थ्य प्राप्ति के लिए शिवजी के मंत्र
सौराष्ट्रदेशे विशदेऽतिरम्ये ज्योतिर्मयं चन्द्रकलावतंसम्।
भक्तिप्रदानाय कृपावतीर्णं तं सोमनाथं शरणं प्रपद्ये ।।
कावेरिकानर्मदयो: पवित्रे समागमे सज्जनतारणाय।
सदैव मान्धातृपुरे वसन्तमोंकारमीशं शिवमेकमीडे।।

ध्यान
ध्याये नित्यं महेशं रजतगिरिनिभं चारुचन्द्रावतंसं,रत्नाकलोज्ज्वलांगं परशुमृगवराभीति हस्तं प्रसन्नं।
पद्माशीनं समन्तात स्तुरिममरगणेव्यार्घृतिं वसानं,विश्ववाध्यं विश्ववन्द्यम निखिल भहरं पंचवक्त्रं त्रिनेत्रम॥
स्वच्छ स्वर्णपयोदं भतिकजपावर्णेभिर्मुखे: पंचभि:,त्र्यक्षरैचितिमीशमिन्दुमुकुटं सोमेश्वराख्यं प्रभुम।
शूलैटंक कृपाणवज्रदहनान-नागेन्द्रघंटाकुशान,पाशं भीतिहरं उधानममिताकल्पोज्ज्वलांग भेजे॥

ध्यान करें
वन्दे देव उमापतिं सुरुगुरु वन्दे जगत्कारणम,
वन्दे पन्नगभूषणं मृगधरं वन्दे पशूनांपतिम।
वन्दे सूर्य शशांक वहिनयनं वन्चे मुकुन्दप्रिय:,
वन्दे भक्तजनाश्रयं च वरदं वन्दे शिवशंकरम॥
शान्तं पदमासनस्थं शशिधर मुकुटं पंचवक्त्रं त्रिनेत्रम,
शूलं वज्र च खडग परशुमभयदं दक्षिणागे वहन्न्तम।
नाग पाशं च घंटां डमरूकसहितं सांकुशं वामभागे,
नानालंकार दीप्तं स्फ़टिकमणिनिभं पार्वतीशं नमामि॥
कर्पूर गौरं करुणावतारं संसार सारं भुजगेन्द्र हारम,
सदा बसन्तं ह्रदयार विन्दे भवं भवानी सहितं नमामि॥

नमस्कार
ऊँ नम: शम्भवाय च मयोभवाय च नम: शंकराय च मयस्कराय च नम: शिवाय च शिवतराय च।
तव तत्वं न जानामि कीदृशोऽसि महेश्वर।
यादशोसि महादेव तादृशाय नमोनम:॥
त्रिनेत्राय नमज्ञतुभ्यं उमादेहार्धधारिणे।
त्रिशूल धारिणे तुभ्यं भूतानां पतये नम:॥
गंगाधर नमस्तुभ्यं वृषमध्वज नमोस्तु ते।
आशुतोष नमस्तुभ्यं भूयो भूयो नमो नम:॥

शिव मूल मंत्र
ॐ नमः शिवाय

महामृत्युंजय मंत्र
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्
उर्वारुकमिव बन्धनानत् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥

महामृत्युञ्जय मंत्र
ऊँ हौं जूं स: ऊँ भुर्भव: स्व: ऊँ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।
ऊर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ऊँ भुव: भू: स्व: ऊँ स: जूं हौं ऊँ

रुद्र गायत्री मंत्र
ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि
तन्नो रुद्रः प्रचोदयात्॥

इसका करें पाठ
नमामिशमीशान निर्वाण रूपं। विभुं व्यापकं ब्रम्ह्वेद स्वरूपं।।
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं। चिदाकाश माकाश वासं भजेयम।।
निराकार मोंकार मूलं तुरीयं। गिराज्ञान गोतीत मीशं गिरीशं।।
करालं महाकाल कालं कृपालं। गुणागार संसार पारं नतोहं।।
तुषाराद्रि संकाश गौरं गम्भीरं। मनोभूति कोटि प्रभा श्री शरीरं।।
स्फुरंमौली कल्लो लीनिचार गंगा। लसद्भाल बालेन्दु कंठे भुजंगा।।
चलत्कुण्डलं भू सुनेत्रं विशालं। प्रसन्नाननम नीलकंठं दयालं।।
म्रिगाधीश चर्माम्बरम मुंडमालं। प्रियम कंकरम सर्व नाथं भजामि।।
प्रचंद्म प्रकिष्ट्म प्रगल्भम परेशं। अखंडम अजम भानु कोटि प्रकाशम।।
त्रयः शूल निर्मूलनम शूलपाणीम। भजेयम भवानी पतिम भावगम्यं।।
कलातीत कल्याण कल्पान्तकारी। सदा सज्ज्नानंद दाता पुरारी।।
चिदानंद संदोह मोहापहारी। प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी।।
न यावत उमानाथ पादार विन्दम। भजंतीह लोके परे वा नाराणं।।
न तावत सुखं शान्ति संताप नाशं। प्रभो पाहि आपन्न मामीश शम्भो ।

शिव ताण्डव स्तोत्र
जटा टवी गलज्जलप्रवाह पावितस्थले गलेऽव लम्ब्यलम्बितां भुजङ्गतुङ्ग मालिकाम्‌।
डमड्डमड्डमड्डमन्निनाद वड्डमर्वयं चकारचण्डताण्डवं तनोतु नः शिव: शिवम्‌ ॥१॥
जटाकटा हसंभ्रम भ्रमन्निलिंपनिर्झरी विलोलवीचिवल्लरी विराजमानमूर्धनि।
धगद्धगद्धगज्ज्वल ल्ललाटपट्टपावके किशोरचंद्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं ममं ॥२॥
धराधरेंद्रनंदिनी विलासबन्धुबन्धुर स्फुरद्दिगंतसंतति प्रमोद मानमानसे।
कृपाकटाक्षधोरणी निरुद्धदुर्धरापदि क्वचिद्विगम्बरे मनोविनोदमेतु वस्तुनि ॥३॥
जटाभुजंगपिंगल स्फुरत्फणामणिप्रभा कदंबकुंकुमद्रव प्रलिप्तदिग्व धूमुखे।
मदांधसिंधु रस्फुरत्वगुत्तरीयमेदुरे मनोविनोदद्भुतं बिंभर्तुभूत भर्तरि ॥४॥
सहस्रलोचन प्रभृत्यशेषलेखशेखर प्रसूनधूलिधोरणी विधूसरां घ्रिपीठभूः।
भुजंगराजमालया निबद्धजाटजूटकः श्रियैचिरायजायतां चकोरबंधुशेखरः ॥५॥
ललाटचत्वरज्वल द्धनंजयस्फुलिङ्गभा निपीतपंच सायकंनम न्निलिंपनायकम्‌।
सुधामयूखलेखया विराजमानशेखरं महाकपालिसंपदे शिरोजटालमस्तुनः ॥६॥
करालभालपट्टिका धगद्धगद्धगज्ज्वल द्धनंजया धरीकृतप्रचंड पंचसायके।
धराधरेंद्रनंदिनी कुचाग्रचित्रपत्र कप्रकल्पनैकशिल्पिनी त्रिलोचनेरतिर्मम ॥७॥
नवीनमेघमंडली निरुद्धदुर्धरस्फुर त्कुहुनिशीथनीतमः प्रबद्धबद्धकन्धरः।
निलिम्पनिर्झरीधरस्तनोतु कृत्तिसिंधुरः कलानिधानबंधुरः श्रियं जगंद्धुरंधरः ॥८॥
प्रफुल्लनीलपंकज प्रपंचकालिमप्रभा विडंबि कंठकंध रारुचि प्रबंधकंधरम्‌।
स्मरच्छिदं पुरच्छिंद भवच्छिदं मखच्छिदं गजच्छिदांधकच्छिदं तमंतकच्छिदं भजे ॥९॥
अखर्वसर्वमंगला कलाकदम्बमंजरी रसप्रवाह माधुरी विजृंभणा मधुव्रतम्‌।
स्मरांतकं पुरातकं भावंतकं मखांतकं गजांतकांधकांतकं तमंतकांतकं भजे ॥१०॥
जयत्वदभ्रविभ्रम भ्रमद्भुजंगमस्फुरद्ध गद्धगद्विनिर्गमत्कराल भाल हव्यवाट्।
धिमिद्धिमिद्धि मिध्वनन्मृदंग तुंगमंगलध्वनिक्रमप्रवर्तित: प्रचण्ड ताण्डवः शिवः ॥११॥
दृषद्विचित्रतल्पयो र्भुजंगमौक्तिकमस्र जोर्गरिष्ठरत्नलोष्ठयोः सुहृद्विपक्षपक्षयोः।
तृणारविंदचक्षुषोः प्रजामहीमहेन्द्रयोः समं प्रवर्तयन्मनः कदा सदाशिवं भजे ॥१२॥
कदा निलिंपनिर्झरी निकुञ्जकोटरे वसन्‌ विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरःस्थमंजलिं वहन्‌।
विमुक्तलोललोचनो ललामभाललग्नकः शिवेति मंत्रमुच्चरन्‌ कदा सुखी भवाम्यहम्‌ ॥१३॥
निलिम्प नाथनागरी कदम्ब मौलमल्लिका-निगुम्फनिर्भक्षरन्म धूष्णिकामनोहरः।
तनोतु नो मनोमुदं विनोदिनींमहनिशं परिश्रय परं पदं तदंगजत्विषां चयः ॥१४॥
प्रचण्ड वाडवानल प्रभाशुभप्रचारणी महाष्टसिद्धिकामिनी जनावहूत जल्पना
विमुक्त वाम लोचनो विवाहकालिकध्वनिः शिवेति मन्त्रभूषगो जगज्जयाय जायताम्‌ ॥१५॥
इमं हि नित्यमेव मुक्तमुक्तमोत्तम स्तवं पठन्स्मरन्‌ ब्रुवन्नरो विशुद्धमेति संततम्‌।
हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नान्यथागतिं विमोहनं हि देहनां सुशंकरस्य चिंतनम् ॥१६॥
पूजाऽवसानसमये दशवक्रत्रगीतं यः शम्भूपूजनपरम् पठति प्रदोषे।
तस्य स्थिरां रथगजेंद्रतुरंगयुक्तां लक्ष्मी सदैव सुमुखीं प्रददाति शम्भुः ॥१७॥
॥ इति रावणकृतं शिव ताण्डवस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥

धन्यबाद
श्रीगुरुजी(बोकारो झारखण्ड)

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