रेलवे आरंभ से ही एक ऐसा संगठन रहा है,जिसने अपने देश हित और सामाजिक दायित्त्वों को व्यावसायिक हितों के ऊपर रखा है। इसी क्रम में 1914 से 1918 के दौरान जब विश्व युद्ध चल रहा था तो छत्रपति शिवाजी महाराज टर्मिनस को एक अस्पताल में तब्दील कर दिया गया था।
छत्रपति शिवाजी महाराज टर्मिनस का नाम पहले विक्टोरिया टर्मिनस होता था, क्योंकि इसका उद्घाटन महारानी विक्टोरिया की जयंती के दिन 1887 में हुआ था।बोरी बंदर में पहले सिर्फ देशी नावों के रूकने की जगह होती थी। बोरी बंदर का स्टेशन पहले लकड़ी का साधारण सा होता था। इसीलिये उच्च दर्जे के यात्री बोरीबंदर की बजाय भायखला से गाड़ी पकड़ना पसंद करते थे, जो तब ज्यादा अच्छा होता था, और वहां प्लेटफार्म भी ऊंचा था ।
पहले तो सिर्फ मुख्य दफ्तर और स्टेशन बना,फिर आसपास इमारतें बनीं, इन इमारतों को इस तरह बनाया गया, ताकि वे पुरानी इमारतों से अलग न दिखें।
धार्मिक और ऐतिहासिक महत्त्व
मुंबई शहर का नाम मुंबा देवी के नाम पर पड़ा है। मुंबा देवी का पहला मंदिर उसी स्थान पर था,जहां आज छत्रपति शिवाजी महाराज टर्मिनस स्टेशन बना है। मुबारकशाह यानि कुतुबउद्दीन ने उस मूल मठ को नष्ट कर दिया था। 1317 में उसे फिर बनाया गया। 1760 में पुर्तगालियों ने उसे फिर नष्ट कर दिया। यहां एक तालाब होता था, जिसके पास पुर्तगालियों ने एक फांसी घर बनाया, जिससे उस तालाब का नाम फांसी का तालाब पड़ गया।
गाथिक-सारसेनिक शैली में बनी छत्रपति शिवाजी महाराज टर्मिनस की रूपरेखा प्रसिद्ध वास्तुकार एफ. डब्ल्यू. स्टीवेंस ने 1887 में तैयार की। इसमें सुन्दर ढंग से महीन खुदाई से सुसज्जित मेहराब रखे गये हैं, जिससे देखने में यह गिरजाघर मालूम पड़ता है। छोटे गुंबद और नुकीली मीनारों की लम्बी तंग और नुकीली खिड़कियों में नक्काशीदार शीशे लगाये गये।
मेहराब और खिड़कियां वेनिस शैली की हैं। जिनसे 1500 वर्ग फीट तक का नजारा लिया जा सकता है।
अंदर की सजावट के लिये इटली के कड़े पत्थर का अधिक प्रयोग किया गया है। केन्द्रीय गुंबद की चोटी पर प्रगति सूचक पत्थर की विशाल मूर्ति है। यह 16 फीट 6 इंच ऊंची है।