आज भी दसहरे में रावण का पुतला नहीं जलाया जाता जिसने भी जलाने का प्रयास किया वो जीवित नहीं बचा ….

न कोई सुनार की दुकान

0
1392

जय बाबा बैजनाथ…यह मन्दिर १२वी शताब्दी का हैं रावण ने कैलाश पर्वत में शिवभोलेनाथ की घोर तपस्या की थी रावण ने अपने एक एक सिर काटने शुरु किये जब रावण अपना दसवां सर काटने लगे तो भोलेनाथ ने रावण से कहा वर मांगो तो रावण ने शिव भोलेनाथ को लंका साथ जाने के लिए कहा की आप लंका मेरे साथ चलो और मुझे कोई मार नहीं सके तो भोलेनाथ जी ने उन्हें शिवलिंग प्रदान किया और बोला कि इसे रास्ते में कहीं मत रखना नहीं तो ये वही स्थापित हो जायेगा फिर रावण कैलाश से बैजनाथ होते हुए लंका जा रहे थे तो बैजनाथ में उन्हे लघुशंका का अनुभव हुआ साथ में खड़े चरवाये को बोला कि शिवलिंग पकड़ो इसे धरती में मत रखना जो कि भोलेनाथ ने चरबाए के रूप में मोहमाया रची थी जब रावण लघुशंका करने गया तभी उस चरवाए ने उस शिवलिंग को जमीन में रख दिया तभी रावण आया और उस शिवलिंग को उठाने का बहुत प्रयास किया परन्तु शिवलिंग वहां स्थापित हो गया और बैजनाथ में आज भी दसहरे में रावण का पुतला नहीं जलाया जाता जिसने भी जलाने का प्रयास किया वो जीवित नहीं बचा और न बैजनाथ में कोई सुनार की दुकान हैं !

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here