लडभड़ोल का सरकारी अस्पताल लडभड़ोल क्षेत्र के लोगों की आफत बनता जा रहा है। अस्पताल में डॉक्टरों की गैर मौजूदगी से मरीजों की मौत का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है। नेगिटिव खबरों से हमेशा सुर्ख़ियों में रहने वाले लडभड़ोल अस्पताल में स्वास्थ्य सुविधाओं के नाम पर सिर्फ औपचारिकता है। यहाँ सरकार बदली गयी, विधायक बदल गए लेकिन नहीं बदली तो लडभड़ोल वासियों की किस्मत जिसमे स्वास्थ्य सुविधाओं का सुख है ही नहीं।
पेड़ से गिरी महिला
ताजा मामले में लडभड़ोल क्षेत्र की एक महिला को इलाज के आभाव में अपनी जिंदगी से हाथ धोना पड़ा। मामला रविवार शाम का है। लडभड़ोल क्षेत्र की खददर पंचायत के बीडीसी सदस्य चकरोड निवासी विजय कुमार की पत्नी 34 वर्षीय महिला मधु देवी पशुओं को घास काटने के लिए पेड़ पर चढ़ी थी। अचानक पैर फिसलने से वह पेड़ से नीचे गिर गयी। नीचे गिरने की वजह से वह गंभीर रूप से घायल हो गयी।
अस्पताल के सभी दरवाजे मिले बंद
घटना की जानकारी मिलते ही मौके पर महिला के परिजन तथा ग्रामीण इक्क्ठा हो गए तथा उन्होंने महिला को आनन फानन में लडभड़ोल के स्वास्थ्य सामुदायिक केंद्र लडभड़ोल में पहुंचाया। लेकिन जब महिला को लेकर परिजन लडभड़ोल अस्पताल पहुंचे तो उन्हें अस्पताल के सभी दरवाजे बंद मिले। महिला की हालत खराब हो रही थी बावजूत इसके महिला को लडभड़ोल अस्पताल में कोई प्राथमिक इलाज नहीं मिला। कुछ देर बाद जब नर्स पहुंची तो उन्होंने महिला को मृत घोषित कर दिया। उसके बाद मौके पर पुलिस पहुंची और महिला के शव को पोस्टमार्टम के लिए जोगिंदरनगर अस्पताल भेज दिया। सोमवार को शव महिला के परिजनों को सौंप दिया जायेगा। हेड कांस्टेबल होशियार वर्मा ने मामले की पुष्टि की है।
परिजनों ने जताई आपत्ति
महिला की मौत पर साथ आये दर्जनों लोगों ने डॉक्टर उपलब्ध न होने के लिए आपत्ति जताई। मृतक महिला के परिजनों का कहना है महिला की हालत बहुत खराब थी। अगर समय रहते इलाज मिल जाता तो महिला की जान बचायी जा सकती थी। दरअसल लडभड़ोल अस्पताल की यह लापरवाही पहली बार नहीं है। महीने में 1 बार लडभड़ोल अस्पताल की इस तरह की खबरें सामने आती रहती हैं। हाल ही में पिछले सप्ताह भी लडभड़ोल अस्पताल की कुछ इसी तरह की खबर सामने आई थी। उस घटना में किसी की जान तो नहीं गई थी लेकिन महिला को समय को इलाज नहीं मिला था।
सिस्टम ने एक झटके में सबकुछ छीना
इस हादसे में जान से हाथ धोने वाली महिला मधु के दो बच्चे है। वह जीना चाहती थी, मगर इस सिस्टम ने उसे मार डाला। अगर हम अब भी चुप रहे तो शायद सिस्टम के साथ-साथ हम भी उतने ही दोषी होंगे। ये कैसा सिस्टम बनाया है हमने, जहां किसी आम इंसान की जान की कोई कीमत ही नहीं है। महिला के बच्चों से इस सिस्टम ने एक झटके में सब कुछ छीन लिया। उनकी सारी उम्मीदें तोड़ दी। अरे क्या मतलब जनता के करोड़ों रुपए खर्च करके सिविल अस्पताल जैसी बड़े अस्पताल बनवाने का, जहां आदमी की जिंदगी की कीमत ही नहीं समझी जाती।