कानपुर की कहानी ‘भारत रत्न’ अटल की जुबानी

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‘भारत रत्न’ पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी कुल मिलाकर 47 साल तक संसद के सदस्य रहे. वह 10 बार लोकसभा और दो बार राज्यसभा के लिए चुने गए.

 

अटल बिहारी वाजपेयी का जन्म 25 दिसंबर, 1924 को मध्य प्रदेश के ग्वालियर में एक स्कूल टीचर कृष्ण बिहारी वाजपेयी और कृष्णा देवी के घर हुआ था. वर्तमान में उनके जन्म दिवस को ‘सुशासन दिवस’ के रूप में मनाया जाता है.

BJP Leader Atal Bihari Vajpayee

अटल बिहारी वाजपेयी मध्य प्रदेश के ग्वालियर में एक ब्राह्मण परिवार में जन्मे थे. वे आर्थिक रूप से कमजोर परिवार से आते थे. शिक्षा पाना उनके लिए बहुत आसान नहीं था. एमए करने के लिए जब उन्होंने कानपुर जाने का निश्चय किया तो उनके पिताजी ने पैसों की कमी के चलते उन्हें आगे की पढ़ाई के लिए कानपुर भेज सकने में अपनी असमर्थता जता दी. पर जब यह बात ग्वालियर रियासत के तत्कालीन राजा जीवाजीराव सिंधिया को पता चली. उन्होंने अटल को आगे की पढ़ाई के लिए छात्रवृत्ति देने का फैसला किया. जिसके बाद हर माह अटल को 75 रुपये कानपुर भिजवाये जाते रहे. अटल बिहारी वाजपेयी कानपुर में करीब चार सालों तक रहे. और इस दौरान उन्होंने राजनीति विज्ञान से एमए करने के बाद एलएलबी की पढ़ाई भी की.अटल जी के पिता पंडित कृष्ण बिहारी वाजपेयी तब तक अपनी सरकारी नौकरी से रिटायर हो चुके थे. ऐसे में उन्होंने भी अटल बिहारी के साथ एलएलबी की पढ़ाई करने का निश्चय किया. हालांकि कई बार दोनों हंसी-ठिठोली का सबब भी बनते थे. झुंड के झुंड विद्यार्थी उन्हें देखने आते थे. पिताजी के क्लास में न आने पर भी अटल से पूछा जाता था, “कहिए आपके पिताजी कहां नदारद हैं?” जब अटल क्लास में नहीं पहुंचते तो प्रोफेसर पूछते, आपके साहबजादे कहां नदारद हैं, “पंडित जी? तो वे तुरंत बोल पड़ते, कमरे में कुंडी लगाकर आते ही होंगे प्रोफेसर जी.”

राजनीति में अटल बिहारी वाजपेयी ने पहला कदम अगस्त, 1942 में ही रख दिया था, जब भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान उन्हें 23 दिनों के लिए गिरफ्तार किया गया था. 1951 में अटल भारतीय जनसंघ के संस्थापक सदस्यों में से एक थे और 1968 से 1973 तक वे जनसंघ के अध्यक्ष भी रहे थे. मोरार जी देसाई की सरकार में जब वे विदेश मंत्री थे तब उन्होंने संयुक्त राष्ट्र में हिंदी में भाषण देकर हिंदी को गौरवान्वित किया. 1980 में जनता पार्टी की खत्म होने के बाद उन्होंने भारतीय जनता पार्टी की स्थापना की. तीन बार भारत के प्रधानमंत्री बनने वाले अटल बिहारी वाजपेयी को 1994 में सर्वश्रेष्ठ सांसद और 2015 में भारत रत्न से नवाजा गया.

अटल जी एक अच्छे संपादक भी रहे. उन्होंने लंबे वक्त तक राष्ट्रधर्म, पांचजन्य और वीर अर्जुन आदि पत्र-पत्रिकाओं का संपादन भी किया. बाद में 1993 में कानपुर विश्वविद्यालय ने उन्हें दर्शनशास्त्र में पी.एच.डी. की मानद उपाधि भी दी थी.

स्कूली शिक्षा के बाद उन्होंने ग्वालियर के विक्टोरिया कॉलेज में स्नातक की पढ़ाई की. उन्होंने कानपुर के डीएवी कॉलेज से एमए किया. कम्युनिज्म से थोड़े दिन के लगाव के बाद 1947 में वह आरएसएस के पूर्णकालिक कार्यकर्ता बन गए.

अटल जी के इस अनुभव में कानपुर शहर का बहुत योगदान है. यह उन दिनों का अनुभव है जब अटल बिहारी वाजपेयी अपने पिता कृष्ण बिहारी वाजपेयी के साथ कानपुर के डीएवी कॉलेज में पढ़ रहे थे. यानि अटल और उनके पिता एक-दूसरे के क्लासमेट रहे थे. कई बार इसके चलते उनसे ठिठोली भी की जाती थी. साथ पढ़ने वाले छात्र उन्हें और उनके पिताजी को देखने झुंड बनाकर छात्रावास भी आया करते थे पर अटल को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता था.1945-47 उन्होंने डीएवी कॉलेज से एमए किया. इसके बाद 1948 में उन्होंने एलएलबी में प्रवेश लिया. लेकिन एक साल की पढ़ाई के बाद ही 1949 में वे संघ का काम करने के लिए पढ़ाई छोड़कर लखनऊ चले गए. एलएलबी के दौरान ही उनके पिता भी उनके साथ डीएवी कॉलेज में पढ़ रहे थे.

कानपुर में एक साल गुजारने के बाद स्वावलंबी अटल बिहारी वाजपेयी ने छात्रवृत्ति न लेने का फैसला किया. और हटिया मोहाल के सीएबी स्कूल में ट्यूशन देने लगे. मजे की बात यह है कि अटल जी ही नहीं उनके पिता जी ने भी यहां ट्यूशन दिया. अटल जी भूगोल तो उनके पिता यहां पर अंग्रेजी पढ़ाया करते थे.

कई छात्र आज भी हैं. उनमें से कई से उनके पारिवारिक संबंध भी स्थापित हो गए थे. एक ऐसे ही छात्र से वे पैसे नहीं लेते थे. बल्कि उसकी मां के हाथों से बना खाना खाया करते थे. वह छात्र अब बुजुर्ग हो चुके हैं. उनका नाम है रमापति त्रिपाठी जो बताते हैं कि अटल बिहारी वाजपेयी को तुअर की दाल और आम का अचार बहुत पसंद था. और वे हर रविवार हमारे यहां खाना खाने आते थे.

अटल बिहारी वाजपेयी ने 1947 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के पूर्णकालिक प्रचारक बने.

1996 में केंद्र की सत्ता में बीजेपी की ताजपोशी वाजपेयी की कमान में ही हुई थी. हालांकि यह सत्ता मात्र 13 दिन की थी. वाजपेयी के करिश्माई व्यक्तित्व के बल पर ही बीजेपी के नेतृत्व वाली गठबंधन की सरकार 1998 में फिर सत्ता में लौटी और इस बार 13 महीने में सरकार अविश्वास प्रस्ताव की अग्नि परीक्षा को पास नहीं कर पाई और गिर गई. अक्तूबर 1999 में बनी बीजेपी की अगली सरकार ने उनके नेतृत्व में अपना कार्यकाल पूरा किया.

भाषाओं, विचारधाराओं और संस्कृतियों के भेद से परे एक कद्दावर और यथार्थवादी करिश्माई राजनेता, वाजपेयी एक प्रबुद्ध वक्ता और शांति के उपासक होने के साथ साथ हरदिल अजीज और मंझे हुए राजनीतिज्ञ भी थे.

भाषाओं, विचारधाराओं और संस्कृतियों के भेद से परे एक कद्दावर और यथार्थवादी करिश्माई राजनेता, वाजपेयी एक प्रबुद्ध वक्ता और शांति के उपासक होने के साथ साथ हरदिल अजीज और मंझे हुए राजनीतिज्ञ थे

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