लू ने उत्तर भारत को लपेटे में ले रखा है. यहां तक कि पाकिस्तान के कराची शहर में तो करीब 60 से ज्यादा लोगों की लू की वजह से जान जा चुकी है. आइए समझें यह लू की वजह क्या होती है.
गर्मी ने कहर ढाना शुरू कर दिया है और हाल ही में पश्चिमी राजस्थान के फालोड़ी में तापमान 50 डिग्री के ऊपर पहुंच गया. मौसम विभाग ने जानकारी दी थी कि फालोड़ी में तापमान 50.5 डिग्री पहुंच गया है. वहीं पड़ोसी देश पाकिस्तान के कराची शहर में लू की वजह से 65 लोगों की जान चली गई. पिछले कुछ दिनों से वहां तापमान 40 डिग्री सेल्सियस चल रहा है.
गर्मी के मौसम से जूझ रहा इलाका जहां तापमान, अपेक्षित तापमान से कहीं ज्यादा हो और पांच दिन से ज्यादा तक यह जारी रहे – इसे लू माना जाता है. इसके साथ ही मौसम में नमी भी आ जाती है. किसी भी क्षेत्र का अपेक्षित तापमान किसी भी मौसम में कितना होगा इसकी गणना तापमान के पिछले 30 साल के रिकॉर्ड के आधार पर की जाती है. गरम हवाएं आमतौर पर एक एरिया के ऊपर बने अधिक दबाव की वजह से पैदा होती हैं. यह अधिक दबाव काफी देर तक बना रहता है, अक्सर कई दिन और हफ्ते भी. लू या गरम हवाएं पर्यावरण के लिए अच्छी होती हैं. सुनने में अजीब लग सकता है लेकिन अच्छा मॉनसून निर्भर करता है इस बात पर की हमारी जम़ीन ठीक से गरम हुई है या नहीं. वहीं दूसरी तरफ लू से होने वाली मौत को भी रोका जा सकता है अगर सही तरह के इंतज़ाम किए जाएं. जैसे दोपहर के वक्त सूरज से सीधा सामना न हो पाए. सूरज और बारिश का आपस में गहरा रिश्ता है और जितना तेज़ सूरज होगा, मॉनसून को आने में उतनी ही आसानी होगी हमारे शरीर का मूल तापमान 37 डिग्री सेल्सियस होता है यानि इस तापमान पर हमारे शरीर से काम लेने वाले एनज़ाइम्स सबसे अच्छे तरीके से प्रदर्शन कर पाते हैं. अफसोस कि इस तापमान के बावजूद गरमी को हम एक डिग्री भी ज्यादा सहन नहीं कर पाते. भारत में विज्ञान की दुनिया के जाने माने पत्रकार पल्लव बागला ने एक लेख में समझाया – इंसान के लिए गरम खून का होना जरूरी है. लेकिन इस खून को गर्म रखने के लिए उसे बहुत कुछ करना पड़ता है. हम खुद को गरम रखने के लिए बहुत सारी ऊर्जा ग्रहण करते हैं. जहां हमारे शरीर के अंदर का तापमान 37 डिग्री सेल्सियस होता है. वहीं त्वचा का तापमान 33 डिग्री रहता है. यानि अंदरूनी हिस्से से त्वचा तक आते आते काफी तापमान कम हो जाता है और तभी शरीर ठंडा रह पाता है. शरीर गर्मी से कैसे डील करता है
जब आसपास का तापमान 45 डिग्री सेल्सियस के करीब पहुंचने लगता है तब उलटी प्रक्रिया शुरू हो जाती है और शरीर में गर्मी जमा होने लगती है. ऐसे में पसीना बहाने वाले ग्लैंड्स काम पर लग जाते हैं, जिससे शरीर ठंडा रहता है. ऐसे में अगर हम कुछ एहितायत बरतें और सूरज से सामना कम ही करें, तो इस लू से हम निपट सकते हैं. लेकिन यह भी सच है कि वक्त के साथ शहरीकरण बढ़ रहा है, और धूल, निर्माण कार्य की वजह से गर्मी बढ़ रही है. यानि लू स्वाभाविक रूप से तो नुकसानदायक नहीं है लेकिन मानव निर्मित कार्यों की वजह से जिस तेज़ी से तापमान में बढ़ोतरी हो रही है, वह निश्चित ही चिंता की बात है.
गर्म हवाओं ने कितनी जानें ली
कुछ साल पहले आई विश्व मौसम विज्ञान संगठन की रिपोर्ट में बताया गया था कि किस तरह गरम हवाएं पिछले एक दशक में बहुत ज्यादा जानलेवा साबित हुई हैं जिसकी वजह से यूरोप में 2003 में 72 हजार लोगों की जाने गई, वहीं रूस में 2010 में 55 हजार लोग लू की चपेट में आ गए. एक स्टडी के मुताबिक किसी भी शहर में ‘ग्रीन स्पेस’ होने से इस तरह की मौतों में 50 फीसदी की कमी आ सकती है. दक्षिण एशिया में लू का कहर कितना पड़ता है इसका अंदाजा हर दिन अखबारों में आने वाली रिपोर्टों से लगाया जा सकता है.
भारत के हिसाब से लू कितनी तापमान में शुरू हो जाती है
राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण, भारत सरकार की वेबसाइट में हीट वेव यानि कड़ी गरमी को कुछ इस तरह समझाया गया है – यह सामान्य तौर पर अधिकतम तापमान से कहीं ज्यादा तापमान को कहते हैं और भारत के उत्तर-पश्चिमी हिस्से के गरमी के मौसम में यह गरम हवाएं आती हैं. यह आमतौर पर मार्च से जून के बीच आती है. अधिकतम तापमान और उसकी वजह से पर्यावरण की स्थितियों में होने वाले बदलाव से उस क्षेत्र के लोगों पर असर पड़ता है और कई बार मौत भी हो जाती है.भारतीय मौसम विभाग के मुताबिक गर्म हवाएं चलने के कई पैमानों में एक यह है कि मैदानी इलाके में जब तापमान 40 डिग्री सेल्सियस और पहाड़ी पर 30 डिग्री से ज्यादा पहुंच जाए.