श्रीजगन्नाथजी की रथ यात्रा” इससे जुड़ी एक रोचक कथा है “भक्त माधवदास जी” की

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. इस वर्ष दिनांक 04.07.2019 गुरुवार को उड़ीसा की श्रीजगन्नाथजी पूरी में निकाली जायेगी “श्रीजगन्नाथजी की रथ यात्रा” इससे जुड़ी एक रोचक कथा है “भक्त माधवदास जी” की👇🏻

(भक्त माधव दास जी)

उड़ीसा प्रान्त में जगन्नाथ पूरी में एक भक्त रहते थे, श्री माधव दास जी अकेले रहते थे, कोई संसार से इनका लेना देना नही। अकेले बैठे बैठे भजन किया करते थे, नित्य प्रति श्री जगन्नाथ प्रभु का दर्शन करते थे, और उन्हीं को अपना सखा मानते थे, प्रभु के साथ खेलते थे। प्रभु इनके साथ अनेक लीलाएँ किया करते थे। प्रभु इनको चोरी करना भी सिखाते थे भक्त माधव दास जी अपनी मस्ती में मग्न रहते थे।"Rath Yatra of Shrijaganathji" is an interesting story related to "Bhakta Madhavdas ji" the spiritual newsroom
एक बार माधव दास जी को अतिसार (उलटी-दस्त) का रोग हो गया। वह इतने दुर्बल हो गए कि उठ-बैठ नहीं सकते थे, पर जब तक इनसे बना ये अपना कार्य स्वयं करते थे और सेवा किसी से लेते भी नही थे। कोई कहे महाराजजी हम कर दें आपकी सेवा तो कहते नही मेरे तो एक जगन्नाथ ही हैं वही मेरी रक्षा करेंगे। ऐसी दशा में जब उनका रोग बढ़ गया वो उठने-बैठने में भी असमर्थ हो गये, तब श्री जगन्नाथजी स्वयं सेवक बनकर इनके घर पहुँचे और माधवदासजी को कहा की हम आपकी सेवा कर दें।
क्योंकि उनका इतना रोग बढ़ गया था कि उन्हें पता भी नही चलता था, कब वे मल मूत्र त्याग देते थे। वस्त्र गंदे हो जाते थे। उन वस्त्रों को जगन्नाथ भगवान अपने हाथों से साफ करते थे, उनके पूरे शरीर को साफ करते थे, उनको स्वच्छ करते थे। कोई अपना भी इतनी सेवा नही कर सकता, जितनी जगन्नाथ भगवान ने भक्त माधव दास जी की करते थे।
जब माधवदासजी को होश आया, तब उन्होंने तुरन्त पहचान लिया की यह तो मेरे प्रभु ही हैं। एक दिन श्री माधवदासजी ने पूछ लिया प्रभु से – “प्रभु ! आप तो त्रिभुवन के मालिक हो, स्वामी हो, आप मेरी सेवा कर रहे हो। आप चाहते तो मेरा ये रोग भी तो दूर कर सकते थे, रोग दूर कर देते तो ये सब करना नही पड़ता।” ठाकुरजी कहते हैं – “देखो माधव ! मुझसे भक्तों का कष्ट नहीं सहा जाता, इसी कारण तुम्हारी सेवा मैंने स्वयं की। जो प्रारब्ध होता है उसे तो भोगना ही पड़ता है। अगर उसको इस जन्म में नहीं काटोगे तो उसको भोगने के लिए फिर तुम्हें अगला जन्म लेना पड़ेगा और मैं नहीं चाहता की मेरे भक्त को जरा से प्रारब्ध के कारण अगला जन्म फिर लेना पड़े। इसीलिए मैंने तुम्हारी सेवा की लेकिन अगर फिर भी तुम कह रहे हो तो भक्त की बात भी नहीं टाल सकता। (भक्तों के सहायक बन उनको प्रारब्ध के दुखों से, कष्टों से सहज ही पार कर देते हैं प्रभु) अब तुम्हारे प्रारब्ध में ये 15 दिन का रोग और बचा है, इसलिए 15 दिन का रोग तू मुझे दे दे।” 15 दिन का वो रोग जगन्नाथ प्रभु ने माधवदासजी से ले लिया।
वो तो हो गयी तब की बात पर भक्त वत्सलता देखो आज भी वर्ष में एक बार जगन्नाथ भगवान को स्नान कराया जाता है (जिसे स्नान यात्रा कहते हैं)। स्नान यात्रा करने के बाद हर साल 15 दिन के लिए जगन्नाथ भगवान आज भी बीमार पड़ते हैं। 15 दिन के लिए मन्दिर बन्द कर दिया जाता है। कभी भी जगन्नाथ भगवान की रसोई बन्द नही होती पर इन 15 दिन के लिए उनकी रसोई बन्द कर दी जाती है। भगवान को 56 भोग नही खिलाया जाता, (बीमार हो तो परहेज तो रखना पड़ेगा)
15 दिन जगन्नाथ भगवान को काढ़ो का भोग लगता है। इस दौरान भगवान को आयुर्वेदिक काढ़े का भोग लगाया जाता है। जगन्नाथ धाम मन्दिर में तो भगवान की बीमारी की जांच करने के लिए हर दिन वैद्य भी आते हैं। काढ़े के अलावा फलों का रस भी दिया जाता है। वहीं रोज शीतल लेप भी लगया जाता है। बीमार के दौरान उन्हें फलों का रस, छेना का भोग लगाया जाता है और रात में सोने से पहले मीठा दूध अर्पित किया जाता है।"Rath Yatra of Shrijaganathji" is an interesting story related to "Bhakta Madhavdas ji" the spiritual newsroom
भगवान जगन्नाथ बीमार हो गए है और अब 15 दिनों तक आराम करेंगे। आराम के लिए 15 दिन तक मंदिरों पट भी बन्द कर दिए जाते है और उनकी सेवा की जाती है। ताकि वे जल्दी ठीक हो जाएँ। जिस दिन वे पूरी तरह से ठीक होते हैं उस दिन जगन्नाथ यात्रा निकलती है, जिसके दर्शन हेतु असंख्य भक्त उमड़ते हैं।
खुद पे तकलीफ ले कर अपने भक्तों का जीवन सुखमयी बनाये, ऐसे भक्तवत्सलता है प्रभु जगन्नाथ जी की।

“जय जय श्रीजगन्नाथ जी”
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