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पूर्व की कांग्रेस सरकार के दो और जमीन अधिग्रहण के मामले सीबीआई को सौंपे मुख्यमंत्री मनोहर लाल ।

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हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने कहा कि पूर्व की कांग्रेस सरकार के दो ओर जमीन अधिग्रहण के मामले सीबीआई को सौंपे गए हैं। उन्होंने कहा कि ‘‘पूर्व मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा ने सदन में छाती ठोककर कहा था कि एक भी इंच जमीन का गलत अधिग्रहण उन्होंने नहीं किया’’। उन्होंने कहा कि ‘‘हुड्डा अब हिम्मत रखे और ये ना कहे राजनीतिक द्वेष के चलते ऐसा हुआ है’’। मुख्यमंत्री ने कहा कि ‘‘ऐसा कोई सगा नहीं, जिसे कांग्रेस ने ठगा नहीं और तो ओर रोहतक वालों को भी नहीं छोड़ा’’। मुख्यमंत्री ने यह बात मंगलवार को चंडीगढ़ में हरियाणा विधानसभा के बजट सत्र के उपरांत पत्रकारों द्वारा पूछे गए प्रश्नों के उत्तर में कही। उन्होंने कहा कि पूर्व की कांग्रेस सरकार के दो ओर जमीन अधिग्रहण के मामले सीबीआई को सौंपे गए हैं। उन्होंने कहा कि रोहतक के उदार गगन मामले की जांच सीबीआई को दी गई है और इसके साथ ही सोनीपत के तीन गांवों नांगल गांव, अटेरना और सेरसा की जमीन अधिग्रहण का मामला भी सीबीआई को दिया गया है। उन्होंने कहा कि इन गांवों की 885 एकड भूमि का अधिग्रहण किया जाना था और सैक्शन-4 और सैक्शन-6 के बीच में जमीन को छोडा जा सकता है परंतु सैक्शन-6 होने के उपरांत सरकार को पूरी जमीन का अधिग्रहण करना होता है परंतु पूर्व की सरकार के समय में लगभग 650 एकड़ भूमि क्यों छोडी गई, यह मामला सीबीआई को सौंपा गया है और सीबीआई की जांच में जो सिफारिश आएगी उसी अनुसार कार्यवाही की जाएगी और जो कोई भी दोषी होगा उसके खिलाफ कार्यवाही होगी। मुख्यमंत्री मनोहर लाल | मुख्यमंत्री ने ढींगरा आयोग की रिपोर्ट के संबंध में कहा कि हाइकोर्ट में हरियाणा के महाधिवक्ता द्वारा रिपोर्ट को सार्वजनिक नही करने की अंडरटेकिंग दी गई है और अब सुप्रीम कोर्ट ने हाइकोर्ट को दो महीने में इस मामले को निपटाने के निर्देश दिए हैं। उन्होंने कहा कि रिपोर्ट में जिन-जिन बातों की सिफारिश होगी, उसी अनुसार कार्यवाही की जाएगी। मुख्यमंत्री ने पेहोवा ऑडियो टेप मामले में विपक्ष पर चुटकी लेते हुए कहा कि ‘‘मैं ना मानूँ, इसका कोई इलाज नही’’। उन्होंने कहा किपद्धति यह कहती है कि पहले जांच होगी और जो कोई भी इसमें दोषी पाया जाएगा तो उसके खिलाफ एफआईआर दर्ज होगी। उन्होंने पूर्व की चौटाला और हुड्डा सरकार के दो मामलों का उदाहरण देते हुए कहा कि आईएएस अधिकारी संजीव कुमार ने उच्चतम न्यायालय में याचिका डाली और उसके बार जांच हुई तथा फिर एफआईआर दर्ज हुई। इसी प्रकार, कांग्रेस के वक्त कर्ण दलाल के पानीपत में जैविक खाद के मामले में भी पहले जांच हुई फिर आगे की कार्यवाही हुई।

राज्यसभा की सीट के लिए हरियाणा से जनरल डी. पी. वत्स ने भरा नामांकन ।

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राज्यसभा की सीट के लिए हरियाणा से जनरल डी. पी. वत्स ने सोमवार को नामांकन भरा। हरियाणा विधानसभा में मुख्यमंत्री मनोहर लाल की मौजूदगी में डी. पी. वत्स ने नामांकन भरा। राज्यसभा की सीट के लिए हरियाणा से सोमवार को जनरल डी. पी. वत्स ने नामांकन भरा। चंडीगढ़ में हरियाणा विधानसभा में मुख्यमंत्री मनोहर लाल और मंत्रियों की मौजूदगी में नामांकन भरा। इस अवसर पर मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने कहा कि डी. पी. वत्स ने देश की सेवा करने में अपना जीवन दिया है। वे बहुत अनुभवी है। मनोहर लाल, मुख्यमंत्री।

प्रताप सिंह बाजवा कांग्रेस कांग्रेस MLA कांग्रेस के द्वारा बांटी गई सर्टिफिकेट और नौकरी पर बोलते हुए

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प्रताप सिंह बाजवा कांग्रेस कांग्रेस MLA कांग्रेस के द्वारा बांटी गई सर्टिफिकेट और नौकरी पर बोलते हुए कहा कि सरकार अपना काम कर रही है और लोगों को जॉब प्रोवाइड कर रही है सबको सरकारी नौकरी में भी चल सकती मगर प्राइवेट नौकरी सबको दी जा सकती है वह सरकार काम कर रही है

निशुम्भ शुम्भ संहारिनी,चंड मुंड खन्डिनि सर्व शक्तिमान भगवती कालीका न्म्हौ नम्ह॥ जय जय मां कालका मां॥ Aaj k shingar darshan 10.3.2018

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निशुम्भ शुम्भ संहारिनी,चंड मुंड खन्डिनि सर्व शक्तिमान भगवती कालीका न्म्हौ नम्ह॥ जय जय मां कालका मां॥
Aaj k shingar darshan
10.3.2018

🙏🌹जय श्री महाकाल 🌹🙏 श्री महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग का आज का संध्या आरती श्रृंगार दर्शन 10 अप्रैल मार्च 2018 ( शनिवार )

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!! मेरे बाबा महाँकाल !!
🍁🍂 जिसमे अंश होता है शिव का,
वही विषधर पिया करते है।
ज़माना उन्हें क्या जलाएगा,
जो अंगारों से श्रृंगार करते है ।। 🍂🍁

🍀🌴महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग उज्जैन का आज प्रातः 4.00 बजे भस्म आरती श्रृंगार दर्शन….🌴दिनांक 10 मार्च 2018 शनिवार
🇮🇳🕉🙏🏻🙏🏻🙏🏻🕉🇮🇳

गौड़ीय वैष्णवों के लिए वे “सम्बन्ध-आचार्य” कर रूप में पूज्य हैं। चैतन्य महाप्रभु के आग्रह पर, श्री वृन्दावन धाम को पुनः प्रकट करने वाले श्री सनातन गोस्वामी ने ही प्रथम मंदिर

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गौड़ीय वैष्णवों के लिए वे “सम्बन्ध-आचार्य” कर रूप में पूज्य हैं। चैतन्य महाप्रभु के आग्रह पर, श्री वृन्दावन धाम को पुनः प्रकट करने वाले श्री सनातन गोस्वामी ने ही प्रथम मंदिर, श्री श्री राधा-मदनमोहन जी की स्थापना की थी।

श्री चैतन्य महाप्रभु ने कहा था की सनातन तुम मेरे ही शरीर के विस्तार हो, और श्री मदन-मोहन के चरणों में आश्रय प्रदान करने के कारण वे एक आदर्श गुरु हैं । वृन्दावन के तीन अर्चविग्रह (मदन-मोहनजी, गोविंद जी एवं गोपीनाथ जी) सभी गौड़ीय-वैष्णवों के आराध्य प्राण-स्वरुप हैं। मदन-मोहन जी के अर्च-विग्रहों का विशिष्ट गुण यह है कि वे भक्ति-मार्ग पर आये नए भक्तों का स्वयं से जो शाश्वत सम्बन्ध है उसे समझने में सहायता करते हैं।

श्रील सनातन गोस्वामी (१४८८-१५५८) आज के वृन्दावन को प्रकट करने वाले षड-गोस्वामियों में से एक थे। बंगाल के सारस्वत ब्राह्मण परिवार में जन्मे बचपन से ही कृष्ण-भक्ति की लौ उनके हृदय में थी । नवाब हुसैन शाह के प्रमुख सलाहकार एवं कोषाध्यक्ष के रूप में सेवा प्रदान कर रहे थे जब श्रीमन महाप्रभु के रामकेली (बंगाल में एक स्थान) यात्रा के समय उनसे प्रेरित होकर सनातन के मन में आत्म-समर्पण की प्रबल इच्छा हुयी और २२ लाख स्वर्ण मुद्राओं की संपत्ति वैष्णवों और सम्बन्धियों में बांट दी। इस इच्छा का नवाब को पता लगने पर कारावास में डाल दिए गए परन्तु किसी प्रकार से बाहर निकल कर अपने छोटे भाई रूप गोस्वामी के साथ वे श्री चैतन्य महाप्रभु से मिलने निकल पड़े।

सनातन गोस्वामी के हृदय में श्री चैतन्य महाप्रभु से मिलने की व्याकुलता बढ़ती जा रही थी। वे लम्बे लम्बे कदम बढ़ाते हुए बंगाल से वृन्दावन की ओर चलते जा रहे थे। कुछ दिनों में वो काशी पहुंचे| वहां पहुँच कर पता चला कि महाप्रभु वृन्दावन से लौटकर काशी में चन्द्रशेखर आचार्य के घर ठहरे हैं| साथ ही पूरी काशी भक्ति के आनंद में सराबोर है । बस फिर क्या था? सनातन गोस्वामी शीघ्रता से महाप्रभु से मिलने पहुंचे परन्तु अपने को दीन समझते हुए उन्हें भीतर जाने का साहस नही हो रहा था| वे बाहर ही खड़े रहे| परन्तु महाप्रभु को आभास हो गया की सनातन आये हुए हैं और वे बाहर आकर उनको गले लगाने के लिए आगे बढे| सनातन पीछे होकर अलग खड़े हो गये और हाथ जोड़कर विनती करने लगे कि मैं नीच यवन-सेवी, विषयी, आपके स्पर्श के योग्य नही हूँ । परन्तु श्री चैतन्य महाप्रभु, सनातन के निकट आकर बोले कि तुम अपनी भक्ति के बल से ब्रह्माण्ड तक को पवित्र करने की शक्ति रखते हो| मुझे भी अपने स्पर्श से धन्य बना दो| फिर क्या था, भगवान् और भक्त गले मिले| अश्रु की धारा रोके नही रुक रही थी। अपने भक्त के लिए भगवान् भी रो पड़ते हैं| महाप्रभु ने चंद्रशेखर से सनातन का वेश बदलने को कहा| सनातन ने एक वस्त्र के २ टुकड़े किये – कोपीन और वहिर्वास के रूप में उसे धारण किया|
अगले दिन महाप्रभु सनातन की बार बार प्रशंसा कर रहे थे परन्तु उनकी नज़र बढ़िया कम्बल पर थी जो सनातन के कंधे पर था| सनातन गंगा तट पर गये और एक भिखारी से उसका फटा हुआ कम्बल ले आये और उसे अपना कम्बल पहना दिया| महाप्रभु यह देखखर बहुत प्रसन्न हुए|

अब प्रश्नोत्तर का क्रम आरम्भ हुआ| सनातन एक के बाद एक प्रश्न पूछते , महाप्रभु प्रसन्नचित्त से उनका उत्तर देते जाते| महाप्रभु ने पहले श्री कृष्ण की भगवत्ता फिर उनके अवतारों का वर्णन किया| फिर साधन-भक्ति और रागानुगा भक्ति का विस्तार से वर्णन किया| अब महाप्रभु ने सनातन को वृन्दावन जाने का आदेश दिया एवं उन्हें चार कार्य सौंपे|
१. मथुरा मंडल के लुप्त तीर्थो और लीला स्थलियों का उद्धार करना|
२. शुद्ध भक्ति सिद्धांत की स्थापना करना|
३. श्री कृष्ण विग्रह प्रकट करने हेतु|
४. वैष्णव स्मृति ग्रन्थ का संकलन कर वैष्णव सदाचार का प्रचार|
इसके अतिरिक्त एक कार्य और दिया| जो वैष्णव भक्त वृन्दावन भजन करने आयेंगे उनकी देख रेख भी तुमको करनी होगी| महाप्रभु से कृपा और आशीर्वाद पाकर श्री सनातन ब्रज की ओर चल पड़े| वृन्दावन पहुँच कर गोस्वामी जी ने जमुना पुलिन पर आदित्य टीला नाम के निर्जन स्थान में रहकर भजन प्रारंभ किया| साथ ही महाप्रभु द्वारा दिये गये कार्य प्रारंभ किये| श्री लोकनाथ गोस्वामी ने इस दिशा में कुछ कार्य किया था| कार्य को आगे बढ़ाते हुए सनातन गोस्वामी वनों, उपवनो और पहाड़ियों में घूमते हुए कातर स्वर से श्री राधा रानी से प्रार्थना करने लगे और फिर उनकी कृपा से एवं अपने दिव्य अनुभवों के आधार पर एक एक लुप्त तीर्थ का उद्धार करने लगे |

 

 

 

सम्बन्ध-आचार्य के होने के नाते उनसे ही हमें यह ज्ञान होता है कि भगवान कृष्ण के साथ हमारा यथोचित सम्बन्ध क्या है और कैसे स्थापित किया जाये । उनके आराध्य-देव श्री श्री राधा मदनमोहन जी(कामदेव को भी मोहित करने वाले) से प्रार्थना करने से हमारे हृदय से इस भौतिक संसार के प्रति आसक्ति समाप्त हो जाती है और हमारा मन भक्ति मार्ग पर दृढ़ता पूर्वक स्थिर हो जाता है ।

श्रील सनातन गोस्वामी को भगवान की सभी बहिरंग एवं अंतरंग गुह्य लीलाओं की व्याख्या करने की विशेष शक्ति प्रदत्त थी। गौड़ीय वैष्णव दर्शन शास्त्रों में उनका बहुत ही बड़ा एवं महत्वपूर्ण योगदान रहा है। उनके द्वारा रचित हरिभक्ति विलास, बृहद-भागवतामृत, बृहद-वैष्णव-तोशनी आदि आज भी रसिक भक्तों के लिए ज्ञान के स्त्रोत हैं ।
श्री राधा-माधव की नित्य-निकुंज लीलाओं में सनातन गोस्वामी, श्रीमती विशाखा सखी के पार्षद “लबंग-मंजरी” हैं ।

श्रीमद भागवतम के दस विषय

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श्रीमद भागवतम के दस विषय

श्रीमद भागवतम में भगवान् श्री कृष्ण को हर व्यक्त रूप का आश्रय बताया गया है क्योंकि भगवान् कृष्ण, परम पुरुषोत्तम भगवान् ही सभी के उद्गम हैं और परम लक्ष्य हैं।

श्रीमद भागवतम में दस विषयों की व्याख्या हुयी है :
१) ब्रह्माण्ड के अवयवों की संरचना
२) ब्रह्मा द्वारा विभिन्न चराचर सृष्टि का निर्माण
३) सृष्टि का पालन
४) भक्तों के ऊपर कृपा
५) भगवद्भक्ति और शुद्ध धर्म का अनुष्ठान
६) कर्म के नियमों का पालन
७) भगवान् के विभिन्न अवतारों के आख्यान
८) सृष्टि का विलोपित होना
९) स्थूल एवं सूक्ष्म भौतिक अस्तित्व से मुक्ति
१०) सर्वोच्च एवं अंतिम आश्रय, परम पुरुषोत्तम भगवान् । दसवाँ विषय अन्य सभी विषयों का आश्रय भी है।
इस सर्वोच्च आश्रय को अन्य सभी विषयों से अलग, समझाने के लिए महाजनों ने प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से अपनी प्रार्थनाओं या स्पष्ट वर्णनों द्वारा इनकी व्याख्या की है।

श्रीमद भागवतम के (२.१०.१ एवं २), श्लोकों में इन दस विषयों की चर्चा हुयी है। इनमे से जो दसवाँ आश्रय तत्त्व है वह सार है और अन्य नौ सार से उत्पन्न वर्ग हैं। विस्तार से यह दस विषय इस प्रकार से हैं :

१) सर्ग : भगवान् श्री विष्णु द्वारा प्रथम सृष्टि की रचना, पंच-महाभूत, पांच इन्द्रिय-विषय-वस्तुएं, पांच इन्द्रिय बोध की वस्तुएं, दस इन्द्रियां, मन, बुद्धि, मिथ्या-अहंकार एवं सम्पूर्ण भौतिक शक्ति या भगवान् का विश्वरूप।

२) विसर्ग : अप्रधान सृष्टि की रचना या ब्रह्मा द्वारा इस ब्रह्माण्ड में चर-अचर जीवों की उत्पत्ति

३) स्थान : भगवान् विष्णु द्वारा ब्रह्माण्ड का पालन। ब्रह्माण्ड के पालक होने के कारण भगवान् विष्णु का स्थान एवं उनकी कीर्ति ब्रह्मा जी या भगवान् शिव से अधिक है।

४) पोषण : भगवान् द्वारा भक्तों की विशेष देख-भाल एवं संरक्षण। जैसे एक राजा अपने राज्य के हर व्यक्ति का समान रूप से पालन-पोषण करता है परन्तु अपने परिवारजनों का विशेष सत्कार करता है, उसी प्रकार भगवान् अपने ऐसे भक्तों, जिन्होंने स्वयं को पूर्ण समर्पित कर दिया है, का विशेष ध्यान रखते हैं।

५) ऊति : सृजन करने की प्रेरणा, या पहल करने की शक्ति जो स्थान, काल, पात्र के अनुसार हर आविष्कार का कारण है।

६) मन्वन्तर : उन मनुओं द्वारा नियंत्रित अवधियां जिसमे वे जीवों के लिए नियामक सिद्धांतों द्वारा अपने मानव जीवन को सफल करने हेतु सीख देते हैं । मनु द्वारा बनाए गए नियमों यानि मनु-संहिता में वर्णित पूर्ण-सिद्धि को प्राप्त करने के मार्ग का वर्णन है ।

७) ईशानुकथा : भगवान्, इस पृथ्वी पर उनके अवतार एवं उनके भक्तों के क्रिया-कलापों के विषय में ज्ञान ही ईशानुकथा है। इन विषयों पर आधारित ग्रन्थ मनुष्य जीवन की उन्नति बहुत महत्वपूर्ण है।

८) निरोध : सृष्टि में नियोजित सभी शक्तियों को समेटने को निरोध कहते हैं। यह सामर्थ्य कारणोदक सागर में शयन करने वाले भगवान् से प्रकट होता है। उनके श्वास से ब्रह्माण्ड का सृजन होता है और समय आने पर विलीन भी हो जाता है।

९) मुक्ति : शरीर और मन के स्थूल और सूक्ष्म आवरण में जकड़े हुए बद्ध जीव की मुक्ति। जब वह जीव हर प्रकार के भौतिक प्रेम से मुक्त हो जाता है तो अध्यात्मिक लोक में अपनी वास्तविक दिव्य-अवस्था प्राप्त कर वैकुण्ठ या कृष्णलोक में भगवान् की सेवा में रत हो जाता है।
जब जीव अपनी मूल स्वाभाविक अवस्था में स्थित हो जाता है तो उसे मुक्त कहा जाता है। इस भौतिक शरीर में रहते हुए भी, भगवान् की दिव्य प्रेमाभक्ति में लगकर, जीवन-मुक्त होना संभव है।

१०) आश्रय : उत्कृष्टता, ज्ञानातीत तत्त्व। परमार्थ जहाँ से सबकुछ उद्भूत है, जिन पर सबकुछ स्थापित है, और जिनमे प्रलय के उपरांत सबकुछ विलीन हो जायेगा, वे सभी के उद्गम और आश्रय हैं। आश्रय को परम-ब्रह्म भी कहा जाता है, जैसे वेदांत-सूत्र में (अथातो ब्रह्म जिज्ञासा, जन्माद्यस्य यतः (श्रीमद भागवत १.१.१) श्रीमद भागवतम विशेष रूप से परम ब्रह्म की व्याख्या आश्रय के रूप के करती है। श्री कृष्ण ही वे आश्रय हैं इसलिए जीवन का सबसे बड़ा प्रयोजन भगवान् कृष्ण के विज्ञान का अध्ययन करना है।

श्रीमद भागवतम में भगवान् श्री कृष्ण को हर व्यक्त रूप का आश्रय बताया गया है क्योंकि भगवान् कृष्ण, परम पुरुषोत्तम भगवान् ही सभी के उद्गम हैं और परम लक्ष्य हैं।

 

 

 

यहाँ पर दो विभिन्न सिद्धांत विचारणीय हैं : आश्रय, वह जो आश्रय दे रहा है और आश्रित, वे जो आश्रय के आकांक्षी हैं। आश्रित, मूल तत्त्व आश्रय के अंतर्गत आते हैं। श्रीमद भागवतम के पहले नौ स्कंधों में वर्णित सृजन से मुक्ति तक – पुरुष-अवतार, अन्य अवतार, तटस्था-शक्ति या जीवात्मा, बहिरंगा-शक्ति या भौतिक संसार – सभी आश्रित हैं।

 

 

तथापि श्रीमद भागवतम की प्रार्थनाएं आश्रय तत्त्व, परम पुरुषोत्तम भगवान् श्री कृष्ण की ओर लक्षित हैं। श्रीमद भागवतम की व्याख्या करने वाले निपुण महानात्माओं ने बहुत सावधानी से अन्य नौ विषयों का निरूपण किया है, कई बार स्पष्ट विवरण द्वारा और कई बार कथाओं के माध्यम से अपरोक्ष विवरण देकर। इन सबका वास्तविक उद्देश्य पूर्ण दिव्य भगवान् श्री कृष्ण हैं क्योंकि सम्पूर्ण सृष्टि, भौतिक एवं अध्यात्मिक, उनपर ही आश्रित है।
श्री चैतन्य चरितामृत आदि २.९१ – ९२, तात्पर्य)

Krishna consciousness was spread all over

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Krishna consciousness was spread all over India in the sixteenth century by Chaitanya Mahaprabhu, who taught that bhakti-yoga is the essence of all religion and the most important point taught in all scripture. He radically challenged the established religious views of the time and convinced Hindus, Muslims, and impersonalists alike to embrace the non-sectarian principles of Krishna consciousness; that anyone, from any social status or background, has equal access to God by practicing devotional service. Mahaprabhu also told His disciples to thoroughly study the Vedas and show how bhakti is the sum and substance of all knowledge presented there.

Krishna consciousness is beneficial on many levels. The great sixteenth century authority on bhakti-yoga, Rupa Goswami, says that devotional service brings immediate relief from all material distress, it is the beginning of all good fortune, and it automatically puts one in transcendental pleasure. In the Bhagavad-gita, Krishna says those who achieve Krishna consciousness are situated in boundless transcendental happiness and think there is no greater gain. They attain peace from all material misery, they can know God as He is, and can even live with Him in the spiritual world, becoming free from material existence entirely. Krishna consciousness can benefit everyone, whatever they may desire.

Practice of Krishna consciousness isn’t dependent on one’s personal belief. Anyone can experience the benefits of bhakti-yoga by applying Krishna conscious principles in their life. Those who do so gradually become more interested in eternal, spiritual life and less attracted to temporary, material pursuits (with their related anxieties). In time, with proper guidance, anyone can revive their individual relationship with Krishna and enjoy genuine, uninterrupted happiness.

“काम” और “प्रेम”

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समाज के निर्धारक भ्रमों में से एक है “काम” को “प्रेम” के समान समझना ।

वे लोग जो शारीरक रूप से एक दूसरे से आकर्षित रहते हैं, वे सोचते हैं कि यही “प्रेम” है । परन्तु प्रायः उनका यह आकर्षण “काम” से बढ़कर कुछ नहीं होता है और यह तब स्पष्ट होता है जब अधिक मेल-जोल के बाद पहले जैसा प्रबल आकर्षण नहीं रह जाता, उनको रसहीन अनुभूति होती है या कभी-कभी आपस में असामंजस्य उभरने से चिढ या क्रोध आने लगता है ।

वैसे तो “काम” और “प्रेम” को कई विभिन्न ढंग से समझा जा सकता है, उनमे से एक है उसका हम पर प्रभाव पड़ना । हम सभी का एक नीच पहलु होता है – वह जो हमें स्वार्थी, अदूरदर्शी और शोषक बनने के लिए प्रेरित करता है।  और एक दूसरा पहलु होता है जो उच्चतर पक्ष दर्शाता है – इसमें हम निःस्वार्थ, दूरदर्शीता और संवेदनशीलता होते हैं । “काम” उस नीच-पहलु का एक भाग है और हमारी उन्ही भावनाओं को बाहर लाता है । यह हमें दूसरों को नियंत्रित और अपने सुख-भोग के लिए उन पर हावी करवाता है।  अंततः “काम” दूसरों को विषय-वस्तु के समान बनाता है और लोगों को उनके शरीर, आकार और घुमाव के आधार पर अपने आनंद के लिए समझता है ।

इसकी तुलना में, “प्रेम” उच्चतर पहलु का भाग है और वहीँ से स्फुरित होता है। जब हम किसी से प्रेम करते हैं तो हम उस  व्यक्ति के आनंद के लिए सर्वश्रेष्ठ बनने का प्रयास करते हैं । इस प्रकार “प्रेम” हमें हमारे नीच पहलु से लड़ने और उसको नियंत्रित करने के लिए प्रेरित करता है।

हालाँकि काम के वश में हम दूसरे व्यक्ति के समक्ष मृदुल मुखौटा प्रस्तुत करते हैं परन्तु केवल ऊपरी भाव से और यह मन एवं शरीर तक सिमित रहता है । ऊपरी सतह के नीचे यह कोई साकारात्मक बदलाव नहीं लाता । वस्तुतः यह मृदुल मुखौटा इस लिए दर्शाया जाता है ताकि हमारी नीचता को बाद में अपने आनंद के लिए किसी पर हावी होने और उससे चालाकी से काम निकालने की छूट मिल सके । गीता के ज्ञान से हमें पता चलता है कि हमारा उच्चतर पहलु हमारी आध्यात्मिकता का सार, हमारी आत्मा से सम्बंधित है।  आत्मा क्योंकि भगवान् का अंश है इस लिए भगवान् के गुणों से परिपूर्ण है ।

यद्यपि यह अभी मन और शरीर से ढका हुआ है, जोकि नकारात्मक संस्कारों और अति-भोग में व्याप्त है । यही संस्कार हमारे नीच पहलु के उद्गम हैं और उन संस्कारों में प्रधान “काम” है । इसी कुंठा के कारण “काम” हमें अधोगति के अस्थिर फिसलन पर धकेल देता है । इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि भगवद-गीता (३.३९) हमें सचेत करती है कि “काम” ऐसा शत्रु है हो हमें भ्रमित और भ्रष्ट करता है ।

मष्तिष्क के अनुसंधान में भी यही पाया गया है कि “काम” और “प्रेम” में भिन्नता है । एम.आर.आई  स्कैन में मष्तिष्क के वे भाग जो कार या मोबाइल फोन पाने की इच्छा के समय जैसे नियंत्रण और स्वामित्व के भावावेश को प्रकाशित करते है वैसा ही प्रभाव “काम” भावना के समय भी उजागर करते हैं । इसके विपरीत जब प्रेमभाव प्रदर्शित होता है तो मष्तिष्क के वे भाग प्रकाशित होते हैं जो देखभाल और आपसी मेलजोल वाले मनोभाव के समय दीखते हैं ।

गीता के ज्ञान से हमें पता चलता है कि आत्मा से शुद्ध प्रेम उमड़ता है और उसकी प्रकृति है, परमात्मा भगवान श्री कृष्ण और उनसे प्रेम करने वालों से प्रेम करना । हम भक्तिमय सेवा के अभ्यास द्वारा जितना इस प्रेम को प्रकट करने का प्रयत्न करेंगे उतना दूसरों को अपने आनंद के लिए उपयोग में लाने वाले कामेक्षा और आत्मा को आवृत किया हुआ काम कम होता जाएगा । जैसे जैसे हम कृष्ण को प्रेम करना सीखेंगे, वैसे वैसे उनके स्मरण में हमें आध्यात्मिक आनंद की अनुभूति होने लगेगी।  ऐसी अनुभूति जो हमें दूसरों को अपने आनंद एवं तुष्टि के लिए उनपर प्रभुत्व या अधिकार जमाने से मुक्त करेगी ।

इसलिए भगवान कृष्ण से प्रेममय सम्बन्ध के संघर्ष में हमारे संसारी सम्बन्धों के बीच भी “काम” “प्रेम” में परिवर्तित हो जायेगा और सांसारिक सम्बन्ध भी दृढ, स्थिर, सकारत्मक और संतोषप्रद हो जायेंगे ।

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