गौड़ीय वैष्णवों के लिए वे “सम्बन्ध-आचार्य” कर रूप में पूज्य हैं। चैतन्य महाप्रभु के आग्रह पर, श्री वृन्दावन धाम को पुनः प्रकट करने वाले श्री सनातन गोस्वामी ने ही प्रथम मंदिर

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गौड़ीय वैष्णवों के लिए वे “सम्बन्ध-आचार्य” कर रूप में पूज्य हैं। चैतन्य महाप्रभु के आग्रह पर, श्री वृन्दावन धाम को पुनः प्रकट करने वाले श्री सनातन गोस्वामी ने ही प्रथम मंदिर, श्री श्री राधा-मदनमोहन जी की स्थापना की थी।

श्री चैतन्य महाप्रभु ने कहा था की सनातन तुम मेरे ही शरीर के विस्तार हो, और श्री मदन-मोहन के चरणों में आश्रय प्रदान करने के कारण वे एक आदर्श गुरु हैं । वृन्दावन के तीन अर्चविग्रह (मदन-मोहनजी, गोविंद जी एवं गोपीनाथ जी) सभी गौड़ीय-वैष्णवों के आराध्य प्राण-स्वरुप हैं। मदन-मोहन जी के अर्च-विग्रहों का विशिष्ट गुण यह है कि वे भक्ति-मार्ग पर आये नए भक्तों का स्वयं से जो शाश्वत सम्बन्ध है उसे समझने में सहायता करते हैं।

श्रील सनातन गोस्वामी (१४८८-१५५८) आज के वृन्दावन को प्रकट करने वाले षड-गोस्वामियों में से एक थे। बंगाल के सारस्वत ब्राह्मण परिवार में जन्मे बचपन से ही कृष्ण-भक्ति की लौ उनके हृदय में थी । नवाब हुसैन शाह के प्रमुख सलाहकार एवं कोषाध्यक्ष के रूप में सेवा प्रदान कर रहे थे जब श्रीमन महाप्रभु के रामकेली (बंगाल में एक स्थान) यात्रा के समय उनसे प्रेरित होकर सनातन के मन में आत्म-समर्पण की प्रबल इच्छा हुयी और २२ लाख स्वर्ण मुद्राओं की संपत्ति वैष्णवों और सम्बन्धियों में बांट दी। इस इच्छा का नवाब को पता लगने पर कारावास में डाल दिए गए परन्तु किसी प्रकार से बाहर निकल कर अपने छोटे भाई रूप गोस्वामी के साथ वे श्री चैतन्य महाप्रभु से मिलने निकल पड़े।

सनातन गोस्वामी के हृदय में श्री चैतन्य महाप्रभु से मिलने की व्याकुलता बढ़ती जा रही थी। वे लम्बे लम्बे कदम बढ़ाते हुए बंगाल से वृन्दावन की ओर चलते जा रहे थे। कुछ दिनों में वो काशी पहुंचे| वहां पहुँच कर पता चला कि महाप्रभु वृन्दावन से लौटकर काशी में चन्द्रशेखर आचार्य के घर ठहरे हैं| साथ ही पूरी काशी भक्ति के आनंद में सराबोर है । बस फिर क्या था? सनातन गोस्वामी शीघ्रता से महाप्रभु से मिलने पहुंचे परन्तु अपने को दीन समझते हुए उन्हें भीतर जाने का साहस नही हो रहा था| वे बाहर ही खड़े रहे| परन्तु महाप्रभु को आभास हो गया की सनातन आये हुए हैं और वे बाहर आकर उनको गले लगाने के लिए आगे बढे| सनातन पीछे होकर अलग खड़े हो गये और हाथ जोड़कर विनती करने लगे कि मैं नीच यवन-सेवी, विषयी, आपके स्पर्श के योग्य नही हूँ । परन्तु श्री चैतन्य महाप्रभु, सनातन के निकट आकर बोले कि तुम अपनी भक्ति के बल से ब्रह्माण्ड तक को पवित्र करने की शक्ति रखते हो| मुझे भी अपने स्पर्श से धन्य बना दो| फिर क्या था, भगवान् और भक्त गले मिले| अश्रु की धारा रोके नही रुक रही थी। अपने भक्त के लिए भगवान् भी रो पड़ते हैं| महाप्रभु ने चंद्रशेखर से सनातन का वेश बदलने को कहा| सनातन ने एक वस्त्र के २ टुकड़े किये – कोपीन और वहिर्वास के रूप में उसे धारण किया|
अगले दिन महाप्रभु सनातन की बार बार प्रशंसा कर रहे थे परन्तु उनकी नज़र बढ़िया कम्बल पर थी जो सनातन के कंधे पर था| सनातन गंगा तट पर गये और एक भिखारी से उसका फटा हुआ कम्बल ले आये और उसे अपना कम्बल पहना दिया| महाप्रभु यह देखखर बहुत प्रसन्न हुए|

अब प्रश्नोत्तर का क्रम आरम्भ हुआ| सनातन एक के बाद एक प्रश्न पूछते , महाप्रभु प्रसन्नचित्त से उनका उत्तर देते जाते| महाप्रभु ने पहले श्री कृष्ण की भगवत्ता फिर उनके अवतारों का वर्णन किया| फिर साधन-भक्ति और रागानुगा भक्ति का विस्तार से वर्णन किया| अब महाप्रभु ने सनातन को वृन्दावन जाने का आदेश दिया एवं उन्हें चार कार्य सौंपे|
१. मथुरा मंडल के लुप्त तीर्थो और लीला स्थलियों का उद्धार करना|
२. शुद्ध भक्ति सिद्धांत की स्थापना करना|
३. श्री कृष्ण विग्रह प्रकट करने हेतु|
४. वैष्णव स्मृति ग्रन्थ का संकलन कर वैष्णव सदाचार का प्रचार|
इसके अतिरिक्त एक कार्य और दिया| जो वैष्णव भक्त वृन्दावन भजन करने आयेंगे उनकी देख रेख भी तुमको करनी होगी| महाप्रभु से कृपा और आशीर्वाद पाकर श्री सनातन ब्रज की ओर चल पड़े| वृन्दावन पहुँच कर गोस्वामी जी ने जमुना पुलिन पर आदित्य टीला नाम के निर्जन स्थान में रहकर भजन प्रारंभ किया| साथ ही महाप्रभु द्वारा दिये गये कार्य प्रारंभ किये| श्री लोकनाथ गोस्वामी ने इस दिशा में कुछ कार्य किया था| कार्य को आगे बढ़ाते हुए सनातन गोस्वामी वनों, उपवनो और पहाड़ियों में घूमते हुए कातर स्वर से श्री राधा रानी से प्रार्थना करने लगे और फिर उनकी कृपा से एवं अपने दिव्य अनुभवों के आधार पर एक एक लुप्त तीर्थ का उद्धार करने लगे |

 

 

 

सम्बन्ध-आचार्य के होने के नाते उनसे ही हमें यह ज्ञान होता है कि भगवान कृष्ण के साथ हमारा यथोचित सम्बन्ध क्या है और कैसे स्थापित किया जाये । उनके आराध्य-देव श्री श्री राधा मदनमोहन जी(कामदेव को भी मोहित करने वाले) से प्रार्थना करने से हमारे हृदय से इस भौतिक संसार के प्रति आसक्ति समाप्त हो जाती है और हमारा मन भक्ति मार्ग पर दृढ़ता पूर्वक स्थिर हो जाता है ।

श्रील सनातन गोस्वामी को भगवान की सभी बहिरंग एवं अंतरंग गुह्य लीलाओं की व्याख्या करने की विशेष शक्ति प्रदत्त थी। गौड़ीय वैष्णव दर्शन शास्त्रों में उनका बहुत ही बड़ा एवं महत्वपूर्ण योगदान रहा है। उनके द्वारा रचित हरिभक्ति विलास, बृहद-भागवतामृत, बृहद-वैष्णव-तोशनी आदि आज भी रसिक भक्तों के लिए ज्ञान के स्त्रोत हैं ।
श्री राधा-माधव की नित्य-निकुंज लीलाओं में सनातन गोस्वामी, श्रीमती विशाखा सखी के पार्षद “लबंग-मंजरी” हैं ।

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